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Parliamentary performance this session
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The Lok Sabha adjourns today for a three-week recess. The Rajya Sabha is scheduled to adjourned on March 18. Here’s a brief look at the activity of Parliament this session (data till March 15): Productive Hours: The session has witnessed more than its fair share of disruptions. In the 14 sitting days, over 22 hours has been lost to interruptions in the Lok Sabha and over 26 hours in the Rajya Sabha. The number of productive hours so far is 53 and 50 hours in the Lok Sabha and Rajya Sabha respectively. [Click here to compare with previous sessions.] The session began with protests by the Opposition, putting pressure on the Government to schedule a debate on price rise. After the presentation of the Budget, the protests revolved around the petroleum price hike. The disruptions in the Rajya Sabha were on account of the Women’s Reservation Bill, which resulted in the suspension of seven MPs. On March 9 the Rajya Sabha was adjourned five times, before the passage of the Bill. Legislative business: This session, the government had listed 63 Bills for introduction, 16 pending Bills for consideration and passing and 10 pending Bills for consideration and passing if their Standing Committee reports are submitted. Other than financial business transacted, which includes passage of Demand for Grants and Appropriation Bills, the only legislation that has been passed so far is the Women’s Reservation Bill in the Rajya Sabha. The Lok Sabha also has passed one Bill that replaces an Ordinance - the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Bill.
भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन किया था। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य के रूप में वर्गीकृत गतिविधियों को छोड़कर अधिकतर आर्थिक गतिविधियों बंद थीं। इसके कारण राज्यों ने चिंता जताई थी कि आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण अनेक व्यक्तियों और व्यापार जगत को आय का नुकसान हुआ है। कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में स्थित इस्टैबलिशमेंट्स में कुछ गतिविधियों को शुरू करने के लिए मौजूदा श्रम कानूनों से छूट दी है। इस ब्लॉग में बताया गया है कि भारत में श्रम को किस प्रकार रेगुलेट किया जाता है और विभिन्न राज्यों ने श्रम कानूनों में कितनी छूट दी है।
भारत में श्रम को कैसे रेगुलेट किया जाता है?
श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है। इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं श्रम को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती हैं। वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने वाले लगभग 100 राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। ये कानून औद्योगिक विवादों को निपटाने, कार्यस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन इत्यादि पर केंद्रित हैं। कानूनों के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने और केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न श्रम कानूनों को चार संहिताओं में संहिताबद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये चार संहिताएं हैं (i) औद्योगिक संबंध, (ii) व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां, (iii) वेतन, और (iv) सामाजिक सुरक्षा। इन संहिताओं में कई कानूनों को समाहित किया गया है जैसे औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947, फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 और वेतन भुगतान एक्ट, 1936।
राज्य सरकारें श्रम को कैसे रेगुलेट करती हैं?
राज्य सरकारें निम्नलिखित द्वारा श्रम को रेगुलेट कर सकती हैं: (i) अपने श्रम कानून पारित करके, या (ii) राज्यों में लागू होने वाले केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में संशोधन करके। अगर किसी विषय पर केंद्र और राज्यों के कानूनों में तालमेल न हो, उन स्थितियों में केंद्रीय कानून लागू होते हैं और राज्य के कानून निष्प्रभावी हो जाते हैं। हालांकि अगर राज्य के कानून का तालमेल केंद्रीय कानून से न हो, और राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल जाए तो राज्य का कानून राज्य में लागू हो सकता है। उदाहरण के लिए 2014 में राजस्थान ने औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 में संशोधन किया था। एक्ट में 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स में छंटनी, नौकरी से हटाए जाने और उनके बंद होने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स के नियोक्ता को श्रमिकों की छंटनी करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। राजस्थान ने 300 कर्मचारियों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर इन विशेष प्रावधानों को लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया। राजस्थान में यह संशोधन लागू हो गया, क्योंकि इसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी।
किन राज्यों ने श्रम कानूनों में छूट दी है?
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी और मध्य प्रदेश ने एक अध्यादेश जारी किया ताकि मौजूदा श्रम कानूनों के कुछ पहलुओं में छूट दी जा सके। इसके अतिरिक्त गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, गोवा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने नियमों के जरिए श्रम कानूनों में रियायतों को अधिसूचित किया है।
मध्य प्रदेश
6 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को जारी किया। यह अध्यादेश दो राज्य कानूनों में संशोधन करता है: मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1961 और मध्य प्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1982। 1961 का एक्ट श्रमिकों के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करता है और 50 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होता है। अध्यादेश ने संख्या की सीमा को बढ़ाकर 100 या उससे अधिक श्रमिक कर दिया है। इस प्रकार यह एक्ट अब उन इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू नहीं होता जिनमें 50 और 100 के बीच श्रमिक काम करते हैं। इन्हें पहले इस कानून के जरिए रेगुलेट किया गया था। 1982 के एक्ट के अंतर्गत एक कोष बनाने का प्रावधान था जोकि श्रमिकों के कल्याण से संबंधित गतिविधियों को वित्त पोषित करता है। अध्यादेश में इस एक्ट को संशोधित किया गया है और राज्य सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह अधिसूचना के जरिए किसी इस्टैबलिशमेंट या इस्टैबलिशमेंट्स की एक श्रेणी को एक्ट के प्रावधानों से छूट दे सकती है। इस प्रावधान में नियोक्ता द्वारा हर छह महीने में तीन रुपए की दर से कोष में अंशदान देना भी शामिल है।
इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश सरकार ने सभी नए कारखानों को औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के कुछ प्रावधानों से छूट दी है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने और छंटनी तथा इस्टैबलिशमेंट्स के बंद होने से संबंधित प्रावधान राज्य में लागू रहेंगे। हालांकि एक्ट के औद्योगिक विवाद निवारण, हड़ताल और लॉकआउट और ट्रेड यूनियंस जैसे प्रावधान लागू नहीं होंगे। ये छूट अगले 1,000 दिनों (33 महीने) तक लागू रहेगी। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि वह कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को इसके प्रावधानों से छूट दे सकती है, अगर सरकार इस बात से संतुष्ट है कि औद्योगिक विवादों के निपटान और जांच के लिए एक तंत्र उपलब्ध है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, अध्यादेश मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रियाओं में लगे सभी कारखानों और इस्टैबलिशमेंट्स को तीन वर्ष की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देता है, अगर वे कुछ शर्तो को पूरा करते हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वेतन: अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से कम वेतन नहीं चुकाया जा सकता। इसके अतिरिक्त श्रमिकों को वेतन भुगतान एक्ट, 1936 में निर्धारित समय सीमा के भीतर वेतन चुकाना होगा। एक्ट में निर्दिष्ट किया गया है कि (i) 1,000 से कम श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स को वेतन अवधि के अंतिम दिन के बाद सातवें दिन से पहले मजदूरी का भुगतान करना होगा, और (ii) सभी दूसरे इस्टैबलिशमेंट्स को वेतन अवधि के अंतिम दिन के बाद दसवें दिन से पहले मजदूरी का भुगतान करना होगा। वेतन श्रमिकों के बैंक खातों में चुकाया जाएगा।
- स्वास्थ्य एवं सुरक्षा: अध्यादेश कहता है कि भवन निर्माण एवं अन्य निर्माण श्रमिक एक्ट, 1996 तथा फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 में निर्दिष्ट स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी प्रावधान लागू होंगे। ये प्रावधान खतरनाक मशीनरी के प्रयोग, निरीक्षण, कारखानों के रखरखाव इत्यादि को रेगुलेट करते हैं।
- काम के घंटे: श्रमिकों से दिन में 11 घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता, और काम का विस्तार रोजाना 12 घंटे से अधिक नहीं हो सकता।
- मुआवजा: किसी दुर्घटना में मृत्यु या विकलांगता की स्थिति में श्रमिकों को कर्मचारी मुआवजा एक्ट, 1923 के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा।
- बंधुआ मजदूरी: बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट, 1973 लागू रहेगा। यह बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन का प्रावधान करता है। बंधुआ मजदूरी ऐसे प्रणाली होती है जिसमें लेनदार देनदार के साथ कुछ शर्तों पर समझौता करता है, जैसे उसके द्वारा या उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने के लिए वह मजदूरी करेगा, विशेष रूप से अपनी जाति या समुदाय या सामाजिक बाध्यता के कारण।
- महिला एवं बच्चे: श्रम कानून के महिलाओं और बच्चों के रोजगार से संबंधित प्रावधान लागू रहेंगे।
यह अस्पष्ट है कि क्या सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक विवाद निवारण, ट्रेड यूनियन, हड़तालों इत्यादि का प्रावधान करने वाले श्रम कानून अध्यादेश में निर्दिष्ट तीन वर्ष की अवधि के लिए उत्तर प्रदेश के व्यापारों पर लागू रहेंगे। चूंकि अध्यादेश केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों के कार्यान्वयन को प्रतिबंधित करता है, उसे लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।
काम के घंटों में परिवर्तन
फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति देता है कि वह तीन महीने के लिए काम के घंटों से संबंधित प्रावधानों से कारखानों को छूट दे सकती है, अगर कारखान अत्यधिक काम कर रहे हैं (एक्सेप्शनल अमाउंट ऑफ वर्क)। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें पब्लिक इमरजेंसी में कारखानों को एक्ट के सभी प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गोवा, असम और उत्तराखंड की सरकारों ने इस प्रावधान की मदद से कुछ कारखानों के लिए काम के अधिकतम साप्ताहिक घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 तथा रोजाना काम के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 कर दिया। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश ने सभी कारखानों को फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी, जोकि काम के घंटों को रेगुलेट करते हैं। इन राज्य सरकारों ने कहा कि काम के घंटों को बढ़ाने से लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कम संख्या की समस्या को हल किया जा सकेगा और लंबी शिफ्ट्स से यह सुनिश्चित होगा कि कारखानों में कम श्रमिक काम करें, ताकि सोशल डिस्टेसिंग बनी रहे। तालिका 1 में विभिन्न राज्यों में काम के अधिकतम घंटों में वृद्धि को प्रदर्शित किया गया है।
तालिका 1: विभिन्न राज्यों में काम के घंटों में बदलाव
राज्य |
इस्टैबलिशमेंट्स |
सप्ताह में काम के अधिकतम घंटे |
रोज काम के अधिकतम घंटे |
ओवरटाइम वेतन |
समय अवधि |
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
अनिवार्य वस्तुओं का वितरण करने वाले और अनिवार्य वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
दो महीने |
|
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने* |
|
सभी कारखाने और सतत प्रक्रिया उद्योग जिन्हें सरकार ने काम करने की अनुमति दी है |
सप्ताह में अधिकतम 6 दिन |
12-12 घंटे की दो शिफ्ट |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
|
गोवा |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
लगभग तीन महीने |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
तीन महीने |
Note: *The Uttar Pradesh notification was withdrawn
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11 मई, 2020 तक भारत में कोविड-19 के 67,152 पुष्ट मामले हैं। 4 मई से 24,619 नए मामले दर्ज किए गए हैं। पुष्ट मामलों में 20,917 मरीजों का इलाज हो चुका है/उन्हें डिस्चार्ज किया जा चुका है और 2,206 की मृत्यु हई है। जैसे इस महामारी का प्रकोप बढ़ा है, केंद्र सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए अनेक नीतिगत फैसलों और महामारी से प्रभावित नागरिकों और व्यवसायों को मदद देने के उपायों की घोषणाएं की हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम केंद्र सरकार के 4 मई, से 11 मई, 2020 तक के कुछ मुख्य कदमों का सारांश प्रस्तुत कर रहे हैं।
Source: Ministry of Health and Family Welfare; PRS.
उद्योग
कुछ राज्यों में श्रम कानूनों में छूट
गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, और उतराखंड की सरकारों ने इस प्रावधान की मदद से कुछ कारखानों के लिए काम के अधिकतम साप्ताहिक घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 तथा रोजाना काम के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 कर दिया। काम के घंटों को बढ़ाने से लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कम संख्या की समस्या को हल करने के लिए ऐसा किया गया है। कुछ राज्य सरकारों ने यह भी कहा है कि लंबी शिफ्ट्स से कारखानों में कम श्रमिक काम करेंगे ताकि सोशल डिस्टेसिंग बनी रहे।
मध्य प्रदेश ने मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को जारी किया। यह अध्यादेश 100 श्रमिकों से कम वाले इस्टैबलिशमेंट्स को मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1961 के अनुपालन से छूट देता है। यह एक्ट श्रमिकों के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करता है। इसके अतिरिक्त यह सरकारों को अनुमति देता है कि वे अधिसूचना के मदद से किसी इस्टैबलिशमेंट या इस्टैबलिशमेंट्स की एक श्रेणी को मध्य प्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1982 के प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। एक्ट श्रमिकों के लिए एक वेल्फेयर फंड की स्थापना का प्रावधान करता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ड्राफ्ट अध्यादेश प्रकाशित किया है जोकि मैन्यूफैक्चरिंग में लगे सभी कारखानों और इस्टैबिशमेंट्स को तीन वर्ष के लिए श्रम कानूनों से छूट देता है। वेतन भुगतान, सुरक्षा, मुआवजे और काम के घंटों से संबंधित कुछ शर्तें लागू रहेंगी। हालांकि सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक विवाद निवारण, ट्रेड यूनियन्स, हड़ताल इत्यादि का प्रावधान करने वाले श्रम कानून अध्यादेश के अंतर्गत लागू नहीं होंगे।
वित्तीय सहायता
केंद्र सरकार ने कोविड-19 सपोर्ट के लिए एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए
केंद्र सरकार और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) ने कोविड-19 इमरजेंसी रिस्पांस और हेल्थ सिस्टम्स प्रिपेयर्डनेस प्रॉजेक्ट के लिए 500 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस प्रॉजेक्ट का उद्देश्य कोविड-19 महामारी की रोकथाम में भारत की मदद करना है और भविष्य में किसी महामारी के प्रकोप के प्रबंधन हेतु भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करना है। इस प्रॉजेक्ट की 1.5 बिलियन डॉलर की राशि को विश्व बैंक और एआईआईबी द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा जिसमें से एक बिलियन डॉलर विश्व बैंक देगा और 500 मिलियन डॉलर की राशि एआईआईबी द्वारा दी जाएगी। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी और इसे संकट के प्रति संवेदनशील आबादी, मेडिकल पर्सनल्स की जरूरतों को पूरा करने तथा मेडिकल एवं टेस्टिंग सुविधाओं के निर्माण के लिए खर्च किया जाएगा। इस प्रॉजेक्ट को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा लागू किया जाएगा।
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भारतीय रेलवे ने 12 मई से यात्री सेवाओं को शुरू करने की योजना बनाई है। इसे ट्रेनों के 15 पेयर्स के साथ शुरू किया जाएगा जोकि नई दिल्ली स्टेशन से डिब्रूगढ़, अगरतला, हावड़ा, पटना, बिलासपुर, रांची, भुवनेश्वर, सिकंदराबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, तिरुअनंतपुरम, मडगांव, मुंबई सेंट्रल, अहमदाबाद और जम्मू तवी के बीच चलेंगी। इन ट्रेनों की बुकिंग 11 मई को शाम 4 बजे से शुरू होगी। इसके बाद भारतीय रेलवे की नए रूट्स पर अधिक सेवाएं शुरू करने की योजना है।
विदेशों में फंसे भारतीयों की वापसी
केंद्र सरकार 7 मई के बाद से चरणबद्ध तरीके से विदेशों में फंसे भारतीयों की वापसी को आसान बनाएगी। हवाई जहाज और नौवहन जहाजों से उनकी यात्रा का प्रबंध किया जाएगा। इन सेवाओं का उपयोग करने के लिए लोगों को भुगतान करना होगा। उड़ान से पहले यात्रियों की मेडिकल स्क्रीनिंग की जाएगी। भारत पहुंचने पर यात्रियों को आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करना होगा। इसके अतिरिक्त संबंधित राज्य सरकार उन्हें अस्पताल या क्वारंटाइन सेंटर में 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन करेगी जिसका भी भुगतान करना होगा। क्वारंटाइन के बाद यात्रियों की कोविड-19 के लिए जांच होगी और नतीजे के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
कोविड-19 के प्रसार पर अधिक जानकारी और महामारी पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की प्रतिक्रियाओं के लिए कृपया यहां देखें।