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An Overview of Fast Track Courts
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After the recent gang-rape of a 23 year old girl, the Delhi High Court directed the state government to establish five Fast Track Courts (FTCs) for the expeditious adjudication of cases relating to sexual assault. According to a news report, other states such as Maharashtra and Tamil Nadu have also begun the process of establishing FTCs for rape cases. In this blog, we look at the status of pending cases in various courts in the country, the number of vacancies of judges and the status of FTCs in the country. Vacancies in the High Courts and the Subordinate Courts One of the reasons for the long delay in the disposal of cases is the high number of vacancies in position for judges in the High Courts and the District Courts of the country. As of December 1, 2012, the working strength of the High Court judges was 613 as against the sanctioned strength of 895 judges. This reflects a 32% vacancy of judges across various High Courts in the country. The highest number of vacancies is in the Allahabad High Court with a working strength of 86 judges against the sanctioned strength of 160 judges (i.e. vacancy of 74 judges). The situation is not much better at the subordinate level. As on September 30, 2011, the sanctioned strength of judges at the subordinate level was 18,123 judges as against a working strength of 14,287 judges (i.e. 21% vacancy). The highest vacancy is in Gujarat with 794 vacancies of judges, followed by Bihar with 690 vacancies. Fast Track Courts The 11th Finance Commission had recommended a scheme for the establishment of 1734 FTCs for the expeditious disposal of cases pending in the lower courts. In this regard, the Commission had allocated Rs 500 crore. FTCs were to be established by the state governments in consultation with the respective High Courts. An average of five FTCs were to be established in each district of the country. The judges for these FTCs were appointed on an adhoc basis. The judges were selected by the High Courts of the respective states. There are primarily three sources of recruitment. First, by promoting members from amongst the eligible judicial officers; second, by appointing retired High Court judges and third, from amongst members of the Bar of the respective state. FTCs were initially established for a period of five years (2000-2005). However, in 2005, the Supreme Court[2] directed the central government to continue with the FTC scheme, which was extended until 2010-2011. The government discontinued the FTC scheme in March 2011. Though the central government stopped giving financial assistance to the states for establishing FTCs, the state governments could establish FTCs from their own funds. The decision of the central government not to finance the FTCs beyond 2011 was challenged in the Supreme Court. In 2012, the Court upheld the decision of the central government.[3] It held that the state governments have the liberty to decide whether they want to continue with the scheme or not. However, if they decide to continue then the FTCs have to be made a permanent feature. As of September 3, 2012, some states such as Arunachal Pradesh, Assam, Maharashtra, Tamil Nadu and Kerala decided to continue with the FTC scheme. However, some states such as Haryana and Chhattisgarh decided to discontinue it. Other states such as Delhi and Karnataka have decided to continue the FTC scheme only till 2013.[4]
State | No of FTC | No of cases transferred until March 31, 2011 | Pending cases |
Arunachal Pradesh | 3 | 4,162 | 2,502 |
Bihar` | 179 | 2,39,278 | 80,173 |
Assam | 20 | 72,191 | 16,380 |
West Bengal | 109 | 1,46,083 | 32,180 |
Goa | 5 | 5,096 | 1,079 |
Punjab | 15 | 58,570 | 12,223 |
Jharkhand | 38 | 1,10,027 | 22,238 |
Gujarat | 61 | 5,37.636 | 1,03,340 |
Chattisgarh | 25 | 9,4670 | 18,095 |
Meghalaya | 3 | 1,031 | 188 |
Rajasthan | 83 | 1,49,447 | 26,423 |
Himachal Pradesh | 9 | 40,126 | 6,699 |
Karnataka | 87 | 2,18,402 | 34,335 |
Andhra Pradesh | 108 | 2,36,928 | 36,975 |
Nagaland | 2 | 845 | 129 |
Kerala | 38 | 1,09,160 | 13,793 |
Mizoram | 3 | 18,68 | 233 |
Haryana | 6 | 38,359 | 4,769 |
Madhya Pradesh | 84 | 3,60,602 | 43,239 |
UP | 153 | 4,64,775 | 53,117 |
Maharashtra | 51 | 4,23,518 | 41,899 |
Tamil Nadu | 49 | 4,11,957 | 40,621 |
Uttarakhand | 20 | 98,797 | 9006 |
Orissa | 35 | 66,199 | 5,758 |
Manipur | 2 | 3,059 | 198 |
Tripura | 3 | 5,812 | 221 |
Total | 1192 | 3898598 | 6,05,813 |
1 जून, 2020 को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों (एमएसएमईज़) की परिभाषा में संशोधन को मंजूरी दी।[1] इस ब्लॉग में हम एमएसएमईज़ की परिभाषा में कैबिनेट द्वारा मंजूर परिवर्तनों पर चर्चा कर रहे हैं और एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाले कुछ मानदंडों की समीक्षा कर रहे हैं।
वर्तमान में एमएसएमईज़ को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास एक्ट, 2006 के अंतर्गत परिभाषित किया जाता है।[2] यह एक्ट उन्हें निम्नलिखित के आधार पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों में वर्गीकृत करता है: (i) माल की मैन्यूफैक्चरिंग या उत्पादन में संलग्न उद्यमों द्वारा प्लांट और मशीनरी में निवेश, और (ii) सेवाएं प्रदान करने वाले उद्यमों द्वारा उपकरणों में निवेश। कैबिनेट की मंजूरी के बाद निवेश सीमा को बढ़ाया गया है और उद्यमों के वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमई के वर्गीकरण के अतिरिक्त मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा (तालिका 1)।
एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के पूर्व प्रयास
केंद्र सरकार ने दो बार पहले भी एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के प्रयास किए हैं। इससे पहले सरकार ने एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2015 को पेश किया था जिसमें एमएसएमईज़ की मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के लिए निवेश की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव था।[3] 2018 में इस बिल को वापस ले लिया गया और दूसरा बिल पेश किया गया। एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2018 नामक इस बिल में निम्नलिखित प्रस्तावित था: (i) एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए निवेश के बजाय वार्षिक टर्नओवर को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना, (ii) मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के बीच के अंतर को समाप्त करना, और (iii) केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए टर्नओवर की सीमा में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करना।[4] 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ 2018 का बिल लैप्स हो गया।
तालिका 1: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के मानदंड के बीच तुलना
2006 एक्ट | 2015 बिल | 2018 बिल | कैबिनेट (जून 2020) |
|||
मानदंड |
निवेश |
निवेश |
टर्नओवर |
निवेश और टर्नओवर |
||
प्रकार |
मैन्यूफैक्चरिंग |
सेवा |
मैन्यूफैक्चरिंग |
सेवा |
दोनों |
दोनों |
सूक्ष्म |
25 लाख रुपए तक |
10 लाख रुपए तक |
50 लाख रुपए तक |
20 लाख रुपए तक |
5 करोड़ रुपए तक |
निवेश: 1 करोड़ रुपए तक |
लघु |
25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए |
10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए |
50 लाख रुपए से 10 करोड़ रुपए |
20 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए |
5 करोड़ रुपए से 75 करोड़ रुपए |
निवेश: 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए |
मध्यम |
5 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए |
2 करोड़ रुपए से 5 करोड़ रुपए |
10 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए |
5 करोड़ रुपए से 15 करोड़ रुपए |
75 करोड़ रुपए से 250 करोड़ रुपए |
निवेश: 10 करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए |
Sources: MSME Development 2006 Act, MSME Development Amendment Bills 2015 and 2018, PIB update on cabinet approval; PRS.
विश्व स्तर पर एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड
हालांकि भारत में अब निवेश और वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, विश्व के अनेक देश व्यापक स्तर पर कर्मचारियों की संख्या को मानदंड के रूप में प्रयोग करते हैं। एमएसएमईज़ पर भारतीय रिजर्व बैंक की एक्सपर्ट कमिटी (2019) ने अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम के एक अध्ययन का हवाला दिया था जिसे 2014 में किया गया था। इस अध्ययन में 155 देशों के विभिन्न संस्थानों की 267 परिभाषाओं का विश्लेषण किया गया था।[5],[6] अध्ययन के अनुसार, अनेक देश एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए कई मानदंडों का एक साथ इस्तेमाल करते हैं। 92% परिभाषाओं में कर्मचारियों की संख्या को कई मानदंडों में से एक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। जिन अन्य मानदंडों को इस्तेमाल किया गया था, वे थे: (i) टर्नओवर (49%), और (ii) एसेट्स का मूल्य (36%)। 11% परिभाषाओं में वैकल्पिक मानदंडों का इस्तेमाल किया गया था, जैसे: (i) लोन की मात्रा, (ii) वर्षों का अनुभव, और (iii) प्रारंभिक निवेश।
रेखाचित्र 1: आईएफसी रिपोर्ट (2014) के अनुसार, विश्व में एमएसएमई के वर्गीकरण के विभिन्न मानदंड
Sources: MSME Country Indicators 2014; International Finance Corporation; Report of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises, Reserve Bank of India; PRS.
तालिका 2: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के लिए विभिन्न देशों के मानदंड
देश |
कर्मचारियों की संख्या |
पूंजीl/परिसंपत्तियां |
टर्नओवर/बिक्री |
बांग्लादेश |
ü |
ü |
|
ब्राजील |
ü |
|
|
चीन |
ü |
ü |
ü |
यूरोपीय संघ |
ü |
ü |
ü |
जापान |
ü |
ü |
|
मलयेशिया |
ü |
|
ü |
युनाइडेट किंगडम |
ü |
ü |
ü |
युनाइटेड स्टेट्स |
ü |
|
ü |
Sources: Report of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises (2019), Reserve Bank of India; PRS.
एमएसएमई की परिभाषा के मानदंडों का मूल्यांकन
निवेश: 2006 का एक्ट एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए प्लांट, मशीनरी और उपकरणों में निवेश का इस्तेमाल करता है। निवेश के मानदंड के साथ कुछ समस्याएं हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- निवेश के मानदंड के लिए फिजिकल वैरिफिकेशन की जरूरत होती है और इसके साथ अन्य खर्चे जुड़े हुए होते हैं।[7]
- महंगाई के कारण निवेश की सीमा को समय-समय संशोधित करना पड़ सकता है। उद्योग संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018) ने कहा था कि 2006 में एक्ट के अंतर्गत स्थापित सीमाएं महंगाई के कारण अप्रासंगिक हो गई हैं।7
- छोटे पैमाने पर कामकाज करने और अपनी अनौपचारिक प्रकृति के कारण कंपनियां खातों का उचित लेखा-जोखा नहीं रखतीं और इसलिए उन्हें मौजूदा परिभाषा के अंतर्गत एमएसएमई के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल होता है।5
- निवेश आधारित वर्गीकरण से मिलने वाले लाभ के कारण प्रमोटर निवेश को बढ़ाते नहीं क्योंकि इससे उन्हें सूक्ष्म या लघु की श्रेणी से संबंधित लाभ मिलते रहते हैं।7
टर्नओवर: 2018 का बिल निवेश के मानदंड को पूरी तरह से हटाकर, वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण का एकमात्र मानदंड बनाने का प्रयास करता था। स्टैंडिंग कमिटी ने बिल के इस प्रस्ताव को मंजूर किया था कि निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर के मानदंड का इस्तेमाल किया जाए।7 यह कहा गया था कि इससे निवेश के आधार पर वर्गीकरण की कुछ कमियों को दूर किया जा सकता है। हालांकि टर्नओवर आधारित मानदंड के लिए वैरिफिकेशन की भी जरूरत पड़ेगी, कमिटी ने कहा कि जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) डेटा इस काम के लिए विश्वसनीय स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, यह भी कहा गया था कि:7
- टर्नओवर को वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने से कॉरपोरेट्स एमएसएमईज़ को दिए जाने वाले लाभों का दुरुपयोग कर सकते हैं। जैसे यह आशंका है कि कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी बड़े टर्नओवर के साथ अधिक मात्रा में उत्पाद बनाए और फिर उसे जीएसटीएन के अंतर्गत सूक्ष्म या लघु उद्यमों के रूप मे पंजीकृत विभिन्न सबसिडियरी कंपनियों के जरिए मार्केट करे।
- कुछ उद्यमों का टर्नओवर कारोबार के आधार पर बदल सकता है, जिससे एक वर्ष के दौरान उद्यम के वर्गीकरण में बदलाव हो सकता है।
- कमिटी ने कहा था कि टर्नओवर की सीमाओं में व्यापक अंतराल है। जैसे 6 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला उद्यम और 75 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला उद्यम (जैसा 2018 के बिल में प्रस्तावित है), दोनों को लघु उद्यम के तौर पर वर्गीकृत किया जाएगा, जोकि बेतुका प्रतीत होता है।
एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने भी निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर को वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।5 यह कहा गया था कि टर्नओवर आधारित परिभाषा पारदर्शी, प्रगतिशील है और उसे जीएसटीएन के जरिए लागू करना आसान है। उसने सुझाव भी दिया था कि एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन की शक्ति कार्यकारिणी को दी जानी चाहिए क्योंकि इससे बदलते आर्थिक परिदृश्यों में बदलाव करने में मदद मिलेगी।
कर्मचारियों की संख्या: स्टैंडिंग कमिटी का कहना था कि भारत जैसे श्रम गहन देश में रोजगार सृजन पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है और एमएसएमई क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त मंच है।7 यह सुझाव भी दिया गया था कि केंद्र सरकार को एमएसएमई क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या का आकलन करना चाहिए और एमएसएमई को वर्गीकृत करते समय मानदंड के रूप में रोजगार पर विचार करना चाहिए। हालांकि एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने कहा था कि जबकि रोजगार आधारित परिभाषा कुछ देशों में पसंद की जाने वाली एक अतिरिक्त विशेषता है, इस परिभाषा को लागू करने में अनेक समस्याएं आएंगी।5 एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, निम्नलिखित कारणों से रोजगार को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना कठिन है: (i) मौसम और काम की अनौपचारिक प्रकृति जैसे कारण, (ii) निवेश के मानदंड की ही तरह इसके लिए फिजिकल वैरिफिकेशन की जरूरत होगी और इसके साथ अन्य खर्चे जुड़े हुए होते हैं।7
एमएसएमईज़ की संख्या
नेशनल सैंपल सर्वे (2015-16) के अनुसार, देश में लगभग 6.34 करोड़ एमएसएमईज़ हैं। सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र में 6.3 करोड़ उद्यम हैं जोकि कुल एमएसएमईज़ की अनुमानित संख्या का 99% से अधिक है। लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का हिस्सा कुल उद्यमों में क्रमशः 0.52% और 0.01% है। एमएसएमईज़ के वितरण को समझने का दूसरा डेटासेट उद्योग आधार है, जोकि यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) द्वारा एमएसएमई उद्यमों को यूनीक आइडेंटिटी के तौर पर दिया जाता है।[8] उद्योग आधार पंजीकरण उद्यमों की स्वघोषणा के आधार पर दिया जाता है। सितंबर 2015 और जून 2020 के दौरान 98.6 लाख उद्यमों का पंजीकरण यूआईडीएआई के साथ किया गया है। इस डेटाबेस के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों का हिस्सा क्रमशः 87.7%, 11.8% और 0.5% है।
तालिका 3: देश में एमएसएमईज़ की संख्या (लाखों में)
|
सूक्ष्म |
लघु |
मध्यम |
कुल |
% हिस्सा |
ग्रामीण |
324.09 |
0.78 |
0.01 |
324.88 |
51% |
शहरी |
306.43 |
2.53 |
0.04 |
309.00 |
49% |
कुल |
630.52 |
3.31 |
0.05 |
633.88 |
|
Sources: 73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS.
एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार
2015-16 में एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11.1 करोड़ लोग काम कर रहे थे। कृषि क्षेत्र के बाद इस क्षेत्र में सबसे अधिक लोग रोजगार प्राप्त हैं। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की सबसे बड़ी संख्या व्यापार गतिविधियों में लगी हुई है (35%), इसके बाद मैन्यूफैक्चरिंग में लगे व्यक्तियों (32%) की संख्या है।
तालिका 4: एमएसएमईज़ में रोजगार (लाख में) (2015-16)
|
सूक्ष्म |
लघु |
मध्यम |
कुल |
% हिस्सा |
ग्रामीण |
489.3 |
7.9 |
0.6 |
497.8 |
45% |
शहरी |
586.9 |
24.1 |
1.2 |
612.1 |
55% |
कुल |
1,076.2 |
32.0 |
1.8 |
1,109.9 |
|
Sources: 73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS.
एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन के प्रभाव
एमएसएमई की परिभाषा में परिवर्तन के कई नतीजे हो सकते हैं। जैसे लघु उद्यम के रूप में वर्गीकृत अनेक उद्यम, सूक्ष्म उद्यम के रूप में वर्गीकृत हो जाएंगे, और मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत उद्यम, लघु के रूप में। इसके अतिरिक्त अनेक उद्यम जो फिलहाल एमएसएमईज़ के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं, नई परिभाषा के कारण एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएंगे। इन उद्यमों को एमएसएमई से संबंधित योजनाओं का भी लाभ मिलेगा। एमएसएमई मंत्रालय निम्नलिखित के लिए विभिन्न योजनाएं चलाता है: (i) एमएसएमई के लिए ऋण, (ii) टेक्नोलॉजी अपग्रेड और आधुनिकीकरण के लिए सहयोग, (iii) उद्यमशीलता और दक्षता विकास, और (iv) क्लस्टर वार उपाय ताकि एमएसएमई इकाइयों में क्षमता निर्माण और सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। जैसे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम के अंतर्गत सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को अधिकतम 75% तक क्रेडिट गारंटी कवर दिया जाता है।[9] इसलिए नए सिरे से वर्गीकरण करने से एमएसएमई क्षेत्र के लिए बजटीय आबंटन में काफी बढ़ोतरी की जरूरत होगी।
कोविड-19 के परिणामस्वरूप एमएसएमई से संबंधित अन्य घोषणाएं
2017-18 में कुल मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में एमएसएमई क्षेत्र का हिस्सा लगभग 33.4% था।[10] इसी वर्ष देश के कुल निर्यात में एमएसएमई का हिस्सा लगभग 49% था। 2015 और 2017 के दौरान जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान करीब 30% था। कोविड-19 के परिणामस्वरूप देश भर में लॉकडाउन के कारण एमएसएमई सहित व्यापार जगत को काफी नुकसान हुआ। इस क्षेत्र को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने मई 2020 में अनेक उपायों की घोषणा की।[11] इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) 25 करोड़ रुपए तक के बकाये और 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले एमएसएमईज़ को कोलेट्रल मुक्त लोन, (ii) स्ट्रेस्ड एमएसएमईज़ को 20,000 करोड़ रुपए अधीनस्थ ऋण के रूप में, और (iii) एमएसएमईज़ में 50,000 करोड़ रुपए का कैपिटल इनफ्यूजन। इन उपायों को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूर कर दिया है।[12]
आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणाओं पर अधिक विवरण के लिए कृपया यहां देखें।
[1] “Cabinet approves Upward revision of MSME definition and modalities/ road map for implementing remaining two Packages for MSMEs (a)Rs 20000 crore package for Distressed MSMEs and (b) Rs 50,000 crore equity infusion through Fund of Funds”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, June 1, 2020.
[2] The Micro, Small and Medium Enterprises Development Act, 2006, https://samadhaan.msme.gov.in/WriteReadData/DocumentFile/MSMED2006act.pdf.
[3] The Micro, Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill, 2015, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/MSME_bill%2C_2015_0.pdf.
[4] The Micro, Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill, 2018, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/The%20Micro%2C%20Small%20and%20Medium%20Enterprises%20Development%20%28Amendment%29%20Bill%2C%202018%20Bill%20Text.pdf.
[5] Report of the Expert Committee on Micro, Small and Medium Enterprises, The Reserve Bank of India, July 2019, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PublicationReport/Pdfs/MSMES24062019465CF8CB30594AC29A7A010E8A2A034C.PDF.
[6] MSME Country Indicators 2014, International Finance Corporation, December 2014, https://www.smefinanceforum.org/sites/default/files/analysis%20note.pdf.
[7] 294th Report on Micro Small and Medium Enterprises Development (Amendment) Bill 2018, Standing Committee on Industry, Rajya Sabha, December 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/17/111/294_2019_3_15.pdf.
[8] Enterprises with Udyog Aadhaar Number, National Portal for Registration of Micro, Small & Medium Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://udyogaadhaar.gov.in/UA/Reports/StateBasedReport_R3.aspx.
[9] Credit Guarantee Fund Scheme for Micro and Small Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, http://www.dcmsme.gov.in/schemes/sccrguarn.htm.
[10] Annual Report 2018-19, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://msme.gov.in/sites/default/files/Annualrprt.pdf.
[11] "Finance Minister announce measures for relief and credit support related to businesses, especially MSMEs to support Indian Economy’s fight against COVID-19", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 13, 2020.
[12] "Cabinet approves additional funding of up to Rupees three lakh crore through introduction of Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS)", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 20, 2020.
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मार्च 2020 से भारत में कोविड-19 के मामलों में निरंतर वृद्धि हुई है। 18 मई, 2020 को इस संक्रामक रोग के 96,169 पुष्ट मामले थे जिनमें से 3,029 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन किया जोकि पहले 14 अप्रैल तक लागू था, फिर इसे बढ़ाकर 31 मई कर दिया गया है। लॉकडाउन के दौरान बीमारी की रोकथाम हो और कृषि उत्पादों की सप्लाई पर असर न हो, इसके लिए कई राज्यों ने अपने कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमिटी (एपीएमसी) कानूनों में संशोधन किए। इस ब्लॉग में हम बता रहे हैं कि भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है, केंद्र सरकार ने कोविड-19 संकट के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए क्या कदम उठाए और विभिन्न राज्यों ने एपीएमसी कानूनों में क्या हालिया संशोधन किए हैं।
भारत में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन कैसे होता है?
कृषि संविधान की राज्य सूची में आने वाला विषय है। अधिकतर राज्यों में कृषि मार्केटिंग का रेगुलेशन एपीएमसी द्वारा किया जाता है जिसकी स्थापना राज्य सरकारें अपने एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत करती हैं। एपीएमसी कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करती हैं, उत्पादों की बिक्री को रेगुलेट करती हैं और राज्य से मार्केट फीस जमा करती हैं, साथ ही कृषि मार्केटिंग में प्रतिस्पर्धा को रेगुलेट करती हैं। 2017 में केंद्र सरकार ने नए कानून को लागू करने और कृषि क्षेत्र में बाजार संबंधी व्यापक सुधार करने के लिए मॉडल कृषि उत्पाद और पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 2017 जारी किया। 2017 के मॉडल एक्ट का उद्देश्य मुक्त प्रतिस्पर्धा की अनुमति देना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना, बिखरे हुए बाजारों को एकीकृत करना, उत्पादों के प्रवाह को सरल बनना और मल्टीपल मार्केटिंग चैनल्स के कामकाज को प्रोत्साहित करना है। नवंबर 2019 में 15वें वित्त आयोग (चेयर: एन. के. सिंह) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस मॉडल एक्ट के सभी प्रावधानों को लागू करने वाले राज्य कुछ वित्तीय प्रोत्साहनों के पात्र होंगे।
कोविड-19 के मद्देनजर केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
2 अप्रैल को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक- राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म के नए फीचर्स को लॉन्च किया। इसका उद्देश्य कृषि मार्केटिंग को मजबूती देना है, और यह भी कि किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए थोक मंडियों में शारीरिक रूप से न आना पड़े। ई-नाम प्लेटफॉर्म संपर्करहित सुदूर नीलामी और मोबाइल आधारित एनी टाइम भुगतान की सुविधा प्रदान करता है जिसके लिए व्यापारियों को मंडी या बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे कोविड-19 की रोकथाम के लिए एपीएमसी मार्केट्स में सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
4 अप्रैल, 2020 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों को एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत रेगुलेशंस में राहत देने के संबंध में एडवाइजरी जारी की। एडवाइजरी में कहा गया कि कृषि उत्पादों की प्रत्यक्ष मार्केटिंग को सरल बनाया जाए। थोक व्यापारी, बड़े रीटेल्स और प्रोसेसर्स किसानों, किसान उत्पादक संघों और सहकारी संघों से उत्पादों की सीधी खरीद कर सकते हैं।
15 मई, 2020 को केंद्रीय वित्त मंत्री ने कोविड-19 और लॉकडाउन के असर को कम करने के लिए देश में कृषि क्षेत्र के लिए कई सुधारों की घोषणा की। कुछ मुख्य सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एक ऐसा केंद्रीय कानून बनाना जोकि किसानों को आकर्षक कीमतों पर अपने कृषि उत्पाद बेचने, बिना किसी बाधा के अंतरराज्यीय व्यापार करने और कृषि उत्पादों के ई-व्यापार के लिए फ्रेमवर्क बनाने के पर्याप्त विकल्प दे,
(ii) अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 में संशोधन ताकि अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों को बेहतर कीमतें मिल सकें, और (iii) कॉन्ट्रैक्ट पर खेती के लिए सरल कानूनी संरचना बनाना, ताकि किसान प्रोसेसर्स, बड़े रीटेलर्स और निर्यातकों के साथ सीधे संपर्क कर सकें।
किन राज्यों ने कृषि मार्केटिंग के कानूनों में बदलाव किए हैं?
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है और मध्य प्रदेश, गुजरात, और कर्नाटक ने अपने एपीएमसी कानूनों के रेगुलेटरी पहलुओं में छूट देने के लिए अध्यादेश जारी किए हैं। इन अध्यादेशों का सारांश प्रस्तुत किया जा रहा है:
मध्य प्रदेश
1 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। यह अध्यादेश मध्य प्रदेश कृषि उपज मंडी एक्ट, 1972 में संशोधन करता है। 1972 का एक्ट कृषि मार्केट की स्थापना और अधिसूचित कृषि उत्पादों की मार्केटिंग को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:
- मार्केट यार्ड्स: 1972 का एक्ट प्रावधान करता है कि हर मार्केट क्षेत्र में एक मार्केट यार्ड होना चाहिए जिसमें एक या उससे अधिक सब मार्केट यार्ड हों ताकि उत्पाद की एसेंबलिंग, ग्रेडिंग, स्टोरेज, बिक्री और खरीद जैसी सभी गतिविधियों को संचालित किया जा सके। अध्यादेश इस प्रावधान को हटाता है और यह निर्दिष्ट करता है कि हर मार्केट क्षेत्र के लिए निम्नलिखित हो सकता है: (i) एपीएमसी का प्रिंसिपल मार्केट यार्ड और सब-मार्केट यार्ड, (ii) निजी मार्केट यार्ड को प्रबंधित करने वाला लाइसेंस धारी व्यक्ति (यह लाइसेंस उसे कृषि मार्केटिंग निदेशक से मिलता है), और (iii) इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स (जहां अधिसूचित उत्पादों की ट्रेडिंग इंटरनेट के जरिए इलेक्ट्रॉनिकली की जाती हैं)।
- कृषि मार्केटिंग निदेशक: अध्यादेश कृषि मार्केटिंग निदेशक का प्रावधान करता है जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। निदेशक निम्नलिखित को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार होगा: (i) अधिसूचित कृषि उत्पादों के लिए ट्रेडिंग और उससे संबंधित गतिविधियां, (ii) निजी मार्केट यार्ड्स, और (iii) इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स। वह इन गतिविधियों के लिए लाइसेंस भी दे सकता है।
- मार्केट फी: अध्यादेश में यह प्रावधान भी है कि कृषि मार्केटिंग निदेशक द्वारा दिए गए लाइसेंस के अंतर्गत ट्रेडिंग के लिए मार्केट फी राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट तरीके से वसूली जाएगी।
गुजरात
6 मई, 2020 को गुजरात सरकार ने गुजरात कृषि उत्पाद बाजार (संशोधन) अध्यादेश, 2020 किया। यह अध्यादेश गुजरात कृषि उत्पाद बाजार एक्ट, 1963 में संशोधन करता है। संशोधित एक्ट गुजरात कृषि उत्पाद एवं पशु मार्केटिंग (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 1963 कहा गया। अध्यादेश क अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:
- पशु बाजार का रेगुलेशन: अध्यादेश एक्ट के अंतर्गत आने वाले पशुओं, जैसे गाय, भैंस, बैल, भैंसे और मछलियों की मार्केटिंग का रेगुलेशन करता है।
- एकीकृत बाजार क्षेत्र: अध्यादेश में प्रावधान है कि राज्य सरकार अधिसूचना के जरिए पूरे राज्य को एकीकृत बाजार घोषित कर सकती है। ऐसा अधिसूचित कृषि उत्पाद की मार्केटिंग के रेगुलेशन के उद्देश्य से किया जा सकता है।
- एकीकृत सिंगल लाइसेंस: अध्यादेश में सिंगल एकीकृत ट्रेडिंग लाइसेंस देने का प्रावधान है। लाइसेंस राज्य के किसी भी बाजार क्षेत्र में वैध होगा। अध्यादेश के जारी होने की तारीख से छह महीने में मौजूदा ट्रेड लाइसेंस को सिंगल एकीकृत लाइसेंस से बदला जा सकता है।
- ट्रेडिंग करने के लिए मार्केट्स: अध्यादेश में राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे बाजार क्षेत्र में किसी भी स्थान को प्रिंसिपल मार्केट यार्ड, सब मार्केट यार्ड, मार्केट सब यार्ड या अधिसूचित कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के रेगुलेशन के लिए किसान उपभोक्ता मार्केट यार्ड अधिसूचित कर सकती हैं। बाजार क्षेत्र में कुछ स्थानों को निजी मार्केट यार्ड, निजी मार्केट सब यार्ड या निजी किसान-उपभोक्ता मार्केट यार्ड घोषित किया जा सकता है। अध्यादेश कहता है कि अधिसूचित कृषि उत्पाद को लाइसेंस धारक को किसी अन्य स्थान पर भी बेचा जा सकता है, अगर मार्केट कमिटी ने विशेष रूप से इसकी अनुमति दी हो।
- मार्केट सब यार्ड: अध्यादेश में यह प्रावधान है कि बाजार क्षेत्र में मार्केट सब यार्ड (वेयरहाउस, स्टोरेज टावर, कोल्ड स्टोरेज एन्क्लोजर बिल्डिंग्स या ऐसी दूसरी संरचना या स्थान या लोकेलिटी) होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इसमें प्रावधान है कि वेयरहाउस, सिलो, कोल्ड स्टोरेज या मार्केट सब यार्ड के रूप में अधिसूचित दूसरी ऐसी संरचना या स्थान का मालिक अधिसूचित कृषि उत्पाद पर मार्केट फी जमा कर सकता है। मार्केट सब यार्ड में जिन गैर अधिसूचित कृषि उत्पादों का लेनदेन हो, उनके लिए यूजर चार्ज भी जमा किया जा सकता है। यह दर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित दर से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि किसानों से मार्केट फी नहीं ली जानी चाहिए।
- ई-ट्रेडिंग: अध्यादेश में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग (ई-ट्रेडिंग) प्लेटफॉर्म्स की स्थापना और उन्हें बढ़ावा देने का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित करने के लिए कृषि मार्केटिंग निदेशक से प्राप्त लाइसेंस जरूरी है। इसके अतिरिक्त निदेशक द्वारा निर्धारित मानदंडों और विनिर्देशों के अनुसार ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर आवेदन दूसरे ई-प्लेटफॉर्म्स के साथ इंटर-ऑपरेबल होंगे। ऐसा एकीकृत राष्ट्रीय क़ृषि बाजार की स्थापना और विभिन्न ई-प्लेटफॉर्म्स के एकीकरण के लिए किया जाएगा।
कर्नाटक
16 मई को कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) (संशोधन) अध्यादेश, 2020 जारी किया। अध्यादेश कर्नाटक कृषि उत्पाद मार्केटिंग (रेगुलेशन और विकास) एक्ट, 1966 में संशोधन करता है। 1966 का एक्ट राज्य में कृषि उत्पादों की खरीद और बिक्री तथा बाजारों की स्थापना को रेगुलेट करता है। अध्यादेश के अंतर्गत मुख्य संशोधन निम्नलिखित हैं:
- कृषि उत्पाद के लिए मार्केट्स: 1966 के एक्ट में प्रावधान है कि मार्केट यार्ड, मार्केट सब यार्ड, सब मार्केट यार्ड, या किसान-उपभोक्ता मार्केट यार्ड के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अध्यादेश इसके स्थान पर कहता है कि मार्केट कमिटी, मार्केट यार्ड्स, मार्केट सब यार्ड्स और सब मार्केट यार्ड्स में अधिसूचित कृषि उत्पाद की मार्केटिंग को रेगुलेट करेगी। यानी अब एक्ट किसी स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की ट्रेंडिंग से प्रतिबंधित नहीं करता।
- सजा: 1966 के एक्ट में प्रावधान है कि जो कोई भी किसी स्थान को अधिसूचित कृषि उत्पाद की खरीद या बिक्री के लिए इस्तेमाल करेगा, उसे छह महीने तक का कारावास या 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों भुगतना पड़ सकता है। अध्यादेश एक्ट के प्रावधान से इस सजा को हटाता है।
उत्तर प्रदेश
- कुछ फलों और सब्जियों को एक्ट के प्रावधानों से छूट: इन फलों और सब्जियों में आम, सेब, गाजर, केला और भिंडी शामिल हैं। प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य यह है कि इन उत्पादों को सरलता से किसानों से सीधा खरीदा जा सके। किसानों को इन्हें एपीएमसी मंडियों में बेचने को भी अनुमति होगी, जहां उनसे मंडी का शुल्क नहीं वसूला जाएगा। उनसे सिर्फ यूजर चार्ज वसूला जाएगा जो राज्य सरकार ने निर्धारित किया है। राज्य सरकार के अनुसार, इससे एपीएमसीज़ को हर साल लगभग 125 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
- लाइसेंस: एपीएमसी मार्केट्स के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर व्यापार करने के लिए विशिष्ट लाइसेंस लिए जा सकते हैं। इससे वेयरहाउस, सिलो और कोल्ड स्टोरेज को मंडी के तौर पर इस्तेमाल करने को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे इस्टैबलिशमेंट्स के मालिक या प्रबंधक मंडी को प्रबंधित करने के लिए यूजर फी ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त एकीकृत लाइसेंस को ग्रामीण स्तर पर व्यापार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
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