मंत्रालय: 
श्रम एवं रोजगार
  • श्रम और रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2019 को पेश किया। यह संहिता सामाजिक सुरक्षा से जुड़े नौ कानूनों, जैसे कर्मचारी भविष्य निधि एक्ट, 1952, मातृत्व लाभ एक्ट, 1961 और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा एक्ट, 2008 का स्थान लेती है। सामाजिक सुरक्षा उन उपायों को कहा जाता है जोकि श्रमिकों को स्वास्थ्य सेवा संबंधी सुविधा और आय सुरक्षा के प्रावधान को सुनिश्चित करते हैं।
     
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाएंसंहिता के अंतर्गत केंद्र सरकार श्रमिकों के लाभ के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को अधिसूचित कर सकती है। इनमें कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना, कर्माचारी पेंशन योजना (ईपीएस) और कर्मचारी डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस (ईडीएलआई) योजना शामिल हैं। ये क्रमशः भविष्य निधि, पेंशन फंड और बीमा योजना प्रदान करती हैं। सरकार निम्नलिखित को भी अधिसूचित कर सकती है: (iबीमारी, मातृत्व और अन्य लाभ प्रदान करने के लिए कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) योजना, (ii) रोजगार के पांच वर्ष पूर्ण होने (या मृत्यु जैसी कुछ स्थितियों में पांच वर्ष से कम) पर श्रमिकों को ग्रैच्युटी, (iii) महिला कर्मचारियों को मातृत्व लाभ, (iv) भवन निर्माण और निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए सेस, और (v) व्यवसायगत चोट या बीमारी की स्थिति में कर्मचारियों और उनके आश्रितों को मुआवजा।
     
  • इसके अतिरिक्त केंद्र या राज्य सरकार गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और असंगठित श्रमिकों को विभिन्न लाभ, जैसे जीवन और विकलांगता कवर के लिए विशिष्ट योजनाओं को अधिसूचित कर सकती हैं। गिग वर्कर्स ऐसे श्रमिक होते हैं जोकि परंपरागत नियोक्ता-कर्मचारी संबंध से बाहर होते हैं (जैसे फ्रीलांसर्स)। प्लेटफॉर्म वर्कर्स ऐसे श्रमिक होते हैं जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से दूसरे संगठनों या व्यक्तियों तक पहुंचते हैं और उन्हें विशिष्ट सेवाएं प्रदान करके धन अर्जित करते हैं। असंगठित श्रमिकों में गृह आधारित (घर पर रहकर काम करने वाले) या स्वरोजगार प्राप्त श्रमिक शामिल होते हैं।
     
  • कवरेज और पंजीकरणसंहिता योजनाओं की एप्लिकेबिलिटी के लिए अलग-अलग सीमाएं निर्दिष्ट करती है। जैसे ईपीएफ योजना 20 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होगी। ईएसआई योजना उन इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होगी जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं और उन इस्टैबलिशमेंट्स पर भी जहां केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित जोखिमपरक या जानलेवा किस्म का कार्य किया जाता है। इन सीमाओं को केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किया जा सकता है। सभी पात्र इस्टैबलिशमेंट्स से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संहिता के अंतर्गत पंजीकृत होंगे, जब तक कि वे दूसरे किसी श्रम कानून के अंतर्गत पंजीकृत न हों। 
     
  • योगदानईपीएफ, ईपीएस, ईडीएलआई और ईएसआई योजनाओं को नियोक्ता और कर्मचारियों के अंशदान से वित्त पोषित किया जाएगा। उदाहरण के लिए ईपीएफ योजना के मामले में नियोक्ता और कर्मचारी 10% वेतन का एक बराबर अंशदान देंगे या सरकार द्वारा अधिसूचित ऐसी ही किसी दूसरी दर पर अंशदान देंगे। ग्रैच्युटी के भुगतान, मातृत्व लाभ, भवन निर्माण श्रमिकों के लिए सेस, और कर्मचारी को मुआवजे का भुगतान नियोक्ता द्वारा वहन किया जाएगा। गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और असंगठित श्रमिकों के लिए योजनाओं को नियोक्ता, कर्मचारी और संबंधित सरकार के अंशदानों से वित्त पोषित किया जा सकता है।
     
  • सामाजिक सुरक्षा संगठनसंहिता सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को प्रबंधित करने के लिए अनेक निकायों को स्थापित कर सकती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (iईपीएफ, ईपीएस और ईडीएलआई योजनाओं को प्रबंधित करने के लिए केंद्रीय ट्रस्टी बोर्ड, जिसके प्रमुख केंद्रीय भविष्य निधि कमीश्नर होंगे, (ii) ईएसआई योजना को प्रबंधित करने के लिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम जिसके प्रमुख केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त चेयरपर्सन होंगे, (iiiअसंगठित श्रमिकों से संबंधित योजनाओं को प्रबंधित करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर सामाजिक सुरक्षा बोर्ड, जिनकी अध्यक्षता केंद्रीय और राज्य स्तरीय श्रम और रोजगार मंत्रियों द्वारा की जाएगी, और (iv) भवन निर्माण श्रमिकों से संबंधित योजनाओं को प्रबंधित करने के लिए राज्य स्तरीय भवन निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड्स, जिनकी अध्यक्षता राज्य सरकार द्वारा नामित चेयरपर्सन करेंगे।
     
  • निरीक्षण और अपीलसंहिता के अंतर्गत आने वाले इस्टैबलिशमेंट के निरीक्षण तथा संहिता के अनुपालन के संबंध में नियोक्ताओं और श्रमिकों को सलाह देने के लिए संबंधित सरकार इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर की नियुक्ति कर सकती है। संहिता के अंतर्गत अपील की सुनवाई के लिए विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रशासनिक अथॉरिटीज़ की नियुक्ति की जा सकती है। उदाहरण के लिए मातृत्व लाभ न चुकाने पर इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर के आदेश के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी में अपील दायर की जा सकती है और उस अथॉरिटी को संबंधित सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है। संहिता ज्यूडीशियल निकायों को भी निर्दिष्ट कर सकती है जोकि प्रशासनिक अथॉरिटी के आदेशों के खिलाफ सुनवाई कर सकते हैं। उदाहरण के लिए औद्योगिक ट्रिब्यूनल (औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के अंतर्गत स्थापित) ईपीएफ योजना के अंतर्गत विवादों की सुनवाई करेगी। 
     
  • अपराध और सजा: संहिता विभिन्न अपराधों के लिए सजा निर्दिष्ट करती है, जैसे: (i) कर्मचारी के हिस्से को काटने के बाद नियोक्ता संहिता के अंतर्गत अंशदान का भुगतान नहीं करता तो उसे एक से तीन साल तक की कैद और एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा, और (iiरिपोर्ट का फर्जीवाड़ा करने पर छह महीने तक की कैद की सजा हो सकती है। 

 

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