मंत्रालय: 
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने 13 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान (निफ्टेम) बिल, 2019 पेश किया। बिल कुछ खाद्य प्रसंस्करण, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थानों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित करता है।
     
  • जिन संस्थानों को इस बिल में शामिल किया गया है, वे हैं, कुंडली स्थित राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान तथा तंजावुर स्थित भारतीय खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी संस्थान। बिल इन संस्थानों को राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान घोषित करता है।
     
  • संस्थानों के कार्यबिल के अंतर्गत संस्थानों के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं(i) आहार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षण, अनुसंधान और ज्ञान का प्रसार करना, (ii) परीक्षाएं कराना और डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट्स तथा दूसरी शैक्षणिक उपाधियां या पदवियां देना, (iii) फीस और दूसरे शुल्क तय करना और उन्हें जमा करना, और (iv) डायरेक्टर को छोड़कर शैक्षणिक और अन्य पदों को आरंभ करना, और उन पर नियुक्तियां करना।
     
  • बोर्ड ऑफ गवर्नर्सबिल बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का प्रावधान करता है जोकि संस्थान का मुख्य कार्यकारी निकाय होगा। बोर्ड संस्थान के मामलों की देखरेख, दिशा और और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होगा। बोर्ड की शक्तियों और कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (iप्रशासनिक नीति से जुड़े फैसले लेना, (iiवार्षिक बजट अनुमानों और विकास की योजनाओं की समीक्षा करना और उन्हें मंजूरी देना, (iii) विभागों, फैकेल्टी या स्कूल ऑफ स्टडीज़ को स्थापित करना, तथा अध्ययन पाठ्यक्रम या प्रोग्राम्स को शुरू करना, और (iv) शैक्षणिक, प्रशासनिक तथा अन्य पदों का सृजन करना और सेवा एवं नियुक्ति की शर्तों को निर्धारित करना। 
     
  • बोर्ड में 16 सदस्य होंगे, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (iचेयरपर्सन, जोकि आहार विज्ञान, प्रौद्योगिकी या प्रबंधन, या ऐसे किसी अन्य क्षेत्र का प्रतिष्ठित व्यक्ति होगा, (iiडायरेक्टर, डीन, रजिस्ट्रार और फैकेल्टी मेंबर्स, (iii) केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि, (iv) एफएसएसएआई और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधि, और (v) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के प्रतिनिधि।
     
  • सीनेटसीनेट संस्थान का मुख्य शैक्षणिक निकाय होगी। यह शिक्षा और परीक्षा के मानदंडों पर नियंत्रण रखेगी। इसके सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं(i) संस्थान का डायरेक्टर चेयरपर्सन के पद पर होगा, (ii) रजिस्ट्रार, (iii) प्रोफेसर के स्तर की सभी पूर्णकालिक फैकेल्टी, और (iv) बोर्ड द्वारा आहार विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रबंधन के क्षेत्रों से तीन शिक्षाविदों को नामित किया जाएगा।
     
  • काउंसिल: बिल काउंसिल की स्थापना का प्रावधान करता है ताकि विभिन्न संस्थानों की गतिविधियों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके और प्रदर्शन में सुधार के लिए परस्पर संवाद कायम किया जा सके। उसके कार्यों में संस्थान के कार्यों के लिए नीतिगत संरचना तैयार करना और नीतिगत उद्देश्यों की पूर्ति की समीक्षा करना शामिल है। 
     
  • काउंसिल में 13 सदस्य होंगे, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री काउंसिल का चेयरपर्सन होगा, (ii) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री, (iii) खाद्य प्रसंस्करण, उच्च शिक्षा एवं वित्त से संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि, (iv) एफएसएसएआई के चेयरपर्सन, (v) नीति आयोग के सीईओ, (vi) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के तीन प्रतिनिधि और खाद्य प्रसंस्करण के तीन शिक्षाविद।
     
  • फंड्सबिल में यह अपेक्षा की गई है कि प्रत्येक संस्थान में एक फंड होना चाहिए जोकि संस्थान के खर्चों को पूरा करेगा। इस फंड में केंद्र सरकार और अन्य स्रोतों, जैसे फीस और दूसरे शुल्क, से प्राप्त होने वाली धनराशि को जमा किया जाएगा। प्रत्येक संस्थान के एकाउंट्स को कैग (भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) द्वारा ऑडिट किया जाएगा। 
     
  • विवादों का निपटाराबिल के अंतर्गत संस्थान और उसके कर्मचारियों के बीच किसी प्रकार का विवाद होने पर मामले को ट्रिब्यूनल ऑफ आर्बिट्रेशन में ले जाया जाएगा। इस ट्रिब्यूनल के तीन सदस्य होंगे- संस्थान द्वारा नियुक्त एक व्यक्ति, संबंधित कर्मचारी का एक नामित व्यक्ति और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अंपायर। ट्रिब्यूनल का फैसला अंतिम होगा, जिसके बाद उस मामले को किसी सिविल अदालत में नहीं उठाया जा सकता। इसके अतिरिक्त आर्बिट्रेशन से संबंधित दूसरे कानूनी प्रावधान इन ट्रिब्यूनलों के अंतर्गत मध्यस्थता पर लागू नहीं होंगे।
     
  • परिनियम और अध्यादेशबिल में प्रत्येक संस्थान के लिए परिनियमों और अध्यादेशों को बनाने से संबंधित प्रावधान हैं जिनमें प्रशासनिक एवं शैक्षणिक मामलों से संबंधित दिशानिर्देश होंगे। परिनियमों और अध्यादेश को क्रमशः बोर्ड और सीनेट द्वारा बनाया जाएगा। प्रत्येक संस्थान के पहले परिनियम को काउंसिल द्वारा केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से बनाया जाएगा। 

 

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