मंत्रालय: 
खान
  • खान और खनिज (विकास और रेगुलेशन) संशोधन बिल, 2021 को लोकसभा में 15 मार्च, 2021 को पेश किया गया। यह बिल खान और खनिज (विकास और रेगुलेशन) एक्ट, 1957 में संशोधन करता है। एक्ट भारत में खनन क्षेत्र को रेगुलेट करता है।
     
  • खनिजों के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना: एक्ट केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह नीलामी प्रक्रिया के जरिए किसी खान (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) को लीज़ पर देने के समय उसे किसी खास अंतिम उपयोग के लिए रिजर्व कर सकती है (जैसे लौह अयस्क की खान को स्टील प्लांट के लिए रिजर्व करना)। ऐसी खानों को कैप्टिन खानें कहा जाता है। बिल में प्रावधान किया गया है कि किसी भी खान को किसी खास अंतिम उपयोग के लिए रिजर्व नहीं किया जाएगा।
     
  • कैप्टिव खानों द्वारा खनिजों की बिक्री: बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिन खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाजार में बेच सकती हैं। केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिए इस सीमा में वृद्धि कर सकती है। लीज़ी को खुले बाजार में बेचे गए खनिजों के लिए अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा।
     
  • कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी: एक्ट के अंतर्गत राज्य खनिज कनसेशंस (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) की नीलामी कर सकते हैं। खनिज कनसेशंस में खनन लीज़ और प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस कम खनन लीज़ शामिल होते हैं। बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह राज्य सरकार की सलाह से नीलामी प्रक्रिया के पूरे होने की एक समय अवधि निर्दिष्ट करे। अगर राज्य सरकार उस अवधि में नीलामी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाती तो केंद्र सरकार यह नीलामी कर सकती है।
     
  • वैधानिक मंजूरियों का हस्तांतरण: खनन लीज़ (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) के खत्म होने के बाद नीलामी के जरिए नए लोगों को खानों की लीज़ दी जाती है। नए लीज़ी को यह लीज़ दो वर्ष की अवधि के लिए दी जाती है। इन दो वर्षों के दौरान नए लीज़ी को नई मंजूरियां हासिल करनी होती हैं। बिल इस प्रावधान को हटाता है और उसके स्थान पर यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंजूरियां नए लीज़ी की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
     
  • लीज़ खत्म होने वाली खानों का आबंटन: बिल में कहा गया है कि जिन खानों (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) की लीज़ की अवधि खत्म हो गई है, उन खानों को कुछ मामलों में सरकारी कंपनियों को आबंटित किया जा सकता है। यह प्रावधान तब लागू होगा, जब नई लीज़ देने के लिए नीलामी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है या नीलामी के एक साल के अंदर ही नई लीज़ खत्म हो गई है। राज्य सरकार ऐसी खान को सरकारी कंपनी को अधिकतम 10 वर्ष के लिए या जब तक नए लीज़ी का चयन नहीं हो जाता, तब तक के लिए (इनमें से जो भी पहले हो) दे सकती है।
     
  • मौजूदा कनसेशन होल्डर्स के अधिकार: 2015 में एक्ट में संशोधन किया गया था और यह प्रावधान किया गया था कि खानों को नीलामी प्रक्रिया के जरिए लीज़ पर दिया जाएगा। मौजूदा कनसेशन होल्डर्स और आवेदकों को कुछ अधिकार दिए गए हैं, जैसे: (i) रिकोनेसेंस परमिट या प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस (2015 के संशोधन एक्ट के लागू होने से पहले जारी) होल्डर को प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस या खनन लीज़ हासिल करने का अधिकार, और (ii) अगर 2015 के संशोधन एक्ट के लागू होने से पहले केंद्र सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी थी या राज्य सरकार ने लेटर ऑफ इनटेंट जारी कर दिया था, तो उन स्थितियों में खनन लीज़ मिलने का अधिकार। बिल में यह प्रावधान किया गया है कि 2021 के संशोधन एक्ट के लागू होने की तारीख से प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस या खनन लीज़ हासिल करने का अधिकार खत्म हो जाएगा। इन लोगों को रिकोनेसेंस या प्रॉस्पेक्टिंग ऑपरेशंस पर किए गए खर्चे की अदायगी कर दी जाएगी।
     
  • सरकारी कंपनियों की लीज़ बढ़ाना: एक्ट में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार सरकारी कंपनियों की खनन लीज़ की अवधि निर्दिष्ट करेगी। बिल में कहा गया है कि सरकारी कंपनियों की लीज़ (नीलामी के जरिए दी गई लीज़ को छोड़कर) की अवधि को अतिरिक्त राशि चुकाने पर बढ़ाया जा सकता है। यह राशि बिल में निर्दिष्ट की गई है।
     
  • खनन लीज़ खत्म होने की शर्तें: एक्ट में प्रावधान है कि खनन लीज़ खत्म हो जाएगी, अगर लीज़ी: (i) लीज़ मिलने के दो वर्ष के भीतर खनन का काम शुरू नहीं कर पाता, या (ii) दो वर्षों तक उसका खनन का काम बंद रहता है। हालांकि अगर लीज़ी के आवेदन के बाद राज्य सरकार ने कनसेशन दे दिया है तो इस अवधि के खत्म होने के बाद लीज़ खत्म नहीं होगी। बिल में यह जोड़ा गया है कि लीज़ के खत्म होने की अवधि को राज्य सरकार सिर्फ एक बार और एक साल तक के लिए बढ़ा सकती है।
     
  • नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनेसेंस परमिट: एक्ट नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनेसेंस परमिट का प्रावधान करता है (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिए)। रिकोनेसेंस का मतलब है, कुछ सर्वेक्षणों के जरिए खनिजों का शुरुआती पूर्वेक्षण (प्रॉस्पेक्टिंग)। बिल इस परमिट के प्रावधान को हटाता है।

 

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