स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

मर्चेट शिपिंग (संशोधन) बिल, 2015

  • परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर बनी स्टैंडिंग कमिटी (अध्यक्षः डॉ. कंवर दीप सिंह) ने 1 दिसंबर, 2015 को मर्चेंट शिपिंग (संशोधन) बिल, 2015 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बिल को अगस्त, 2015 में लोकसभा में पेश किया गया था। यह बिल मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 को संशोधित करता है और इसका उद्देश्य इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन सिविल लायबिलिटी फॉर बंकर ऑयल पॉल्यूशन डैमेज, 2001 (बंकर तेल प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति सिविल दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन) का अनुपालन सुनिश्चित करना है। जून, 2015 में कन्वेंशन पर भारत की स्वीकृति को अनुमोदन मिला था। कन्वेंशन सुनिश्चित करता है कि उन लोगों को पर्याप्त, त्वरित और कारगर मुआवजा मिले जो जहाज के बंकर में भरे तेल ईंधन के रिसाव से होने वाले नुकसान का शिकार होते हैं।  
     
  • दायित्व से छूटः बिल कहता है कि जहाज का मालिक प्रदूषण संबंधी किसी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा, अगर वह यह साबित कर दे कि नुकसान एक्ट ऑफ गॉड (प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप, बाढ़ इत्यादि), विद्वेष, सरकारी लापरवाही या तीसरे पक्षों द्वारा जान-बूझ कर किए गए किसी काम की वजह से हुआ है। कमिटी ने यह पाया कि इस तरह की छूट से मुकदमेबाजी के लिए पर्याप्त गुंजाइश बन सकती है और जहाज मालिक मुआवजा देने से बचने के लिए इस प्रावधान का इस्तेमाल कर सकता है। कमिटी ने इस पहलु पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया है जिससे किसी भी प्रकार की अस्पष्टता से बचा जा सके।
     
  • कार्गो की लोडिंग और अनलोडिंग के समय जहाज से तेल का रिसाव न हो, इसके लिए कमिटी ने सुझाव दिया है कि बंदरगाहों को आधुनिक उपकरणों से लैस किया जाना चाहिए। आर्थिक तंगी से जूझ रहे प्रमुख बंदरगाहों की 50% मौजूदा सबसिडी सीमा को बढ़ाया जाना चाहिए जिससे उन्हें अधिक उपकरणों की खरीद में मदद मिले। इसके अतिरिक्त, सरकार को जहाज के टूटे हिस्सों, जो भारतीय समुद्र में पहले से मौजूद हैं, को हटाने के लिए एक निश्चित समयावधि वाली कार्य योजना बनानी चाहिए।
     
  • जहाज मालिक की ओर से अनुबंधों को पूरा करनाः बिल के तहत, जहाज के मालिक की ओर से मास्टर को बचाव (साल्वेज) कार्य से संबंधित अनुबंध को पूरा करने का अधिकार है। बचाव कार्य में क्षति का शिकार हुए या फंसे हुए जहाज को बचाना या बचाने में मदद करना शामिल होता है। कमिटी ने यह पाया कि चूंकि जहाज का मास्टर, जहाज मालिक का कर्मचारी होता है, इसलिए संभव है कि जहाज का मालिक मास्टर या बचावकर्मी (साल्वर) द्वारा हस्ताक्षरित अनुबंध को स्वीकार न करे। कमिटी ने सुझाव दिया है कि यह प्रावधान भी जोड़ा जाना चाहिए कि जहाज का मालिक उस स्थिति में मास्टर के फैसले को चुनौती नहीं दे सकता, जब यह फैसला पर्याप्त सलाह के बाद लिया गया हो।
     
  • बचाव कार्यः कमिटी को लगता है कि भारत के क्षेत्रीय समुद्र के भीतर होने वाले बचाव कार्यों में भारतीय कंपनियों को वरीयता दी जानी चाहिए। इस संबंध में, उसने एक प्रावधान को जोड़े जाने का सुझाव दिया जिसमें केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करे कि भारतीय बचावकर्मियों को भारत में किसी भी प्रकार के बचाव कार्य से इनकार करने का पहला अधिकार मिले। साल्वर वह व्यक्ति होता है जो बचाव के काम में प्रत्यक्ष रूप से अपनी सेवाएं प्रदान करता है।
     
  • कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि जहाज मालिकों के दिवालिया होने और बचावकर्मियों को भुगतान न कर पाने या बचावकर्मियों के लिए बीमा कवरेज न होने, जैसे मामलों से निपटने के लिए प्रासंगिक प्रावधान होने चाहिए।
     
  • शिकायत निवारण तंत्रः बिल किसी किस्म का शिकायत निवारण तंत्र प्रदान नहीं करता। कमिटी ने पाया कि बचाव कार्य के दौरान कई प्रकार की शिकायतें खड़ी हो सकती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल को इस संबंध में एक व्यवस्था करनी चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि मौजूदा एक्ट में पुरानी धाराओं को हटाने और नए प्रासंगिक धाराओं को जोड़ने के लिए सरकार को नए मर्चेट शिपिंग एक्ट को लागू करने पर विचार करना चाहिए।

 

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