सेलेक्ट कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

संविधान (122वां संशोधन) बिल, 2014 (जीएसटी)

  • संविधान (122वां संशोधन) बिल, 2014 पर विचार के लिए गठित सेलेक्ट कमिटी ने 22 जुलाई, 2015 को राज्यसभा में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बिल को लोकसभा में 5 मई, 2014 को पारित किया गया था और तत्पश्चात विचार के लिए राज्यसभा की सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा गया था।
     
  • बिल माल और सेवा कर (जीएसटी) को लगाने के लिए कानूनी ढांचा बनाने हेतु संसद और राज्य विधायिका को समर्थ बनाने के लिए संविधान में संशोधन करता है। यह जीएसटी परिषद का गठन भी करता है जिसमें जीएसटी के कार्यान्वयन के संबंध में सुझाव देने के लिए केंद्र और सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है जिसमें अनेक केंद्रीय और राज्य स्तरीय अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं और यह माल और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू होता है।
     
  • 1% तक का अतिरिक्त करः बिल केंद्र को अंतरराज्यीय व्यापार में माल की आपूर्ति पर 1% तक का अतिरिक्त कर वसूलने का अधिकार देता है। यह कर उन राज्यों को प्राप्त होगा ज माल की आपूर्ति के मूल स्थान है। कमिटी ने कहा है कि 1% तक अतिरिक्त कर लगाने से करों की कैसकेडिंग (कर के ऊपर कर) हो सकती है। इसलिए यह सुझाव दिया गया कि ‘आपूर्ति’ शब्द की परिभाषा को “प्रतिफल के लिए की गई सभी तरह की आपूर्ति किया जाए।’’
     
  • राज्यों को मुआवजाः बिल संसद को राज्यों को मुआवजा देने के संबंध में कानून बनाने की अनुमति देता है ताकि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों को होने वाले राजस्व घाटे की भरपाई अधिकतम पाँच वर्ष की अवधि तक की जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया है कि राज्यों को पांच साल के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए।
     
  • जीएसटी परिषद के कार्यः जीएसटी परिषद जीएसटी दरों पर सुझाव देगी। इसमें जीएसटी के बैंड भी शामिल हैं, जिन्हें वसूला जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि बैंड शब्द को और स्पष्ट किया जाए जिससे इसमें न्यूनतम नियत दर के साथ कर की अनेक दरों को शामिल किया जा सके, जिसके तहत सीजीएसटी और एसजीएसटी को विशेष माल और सेवाओं या माल और सेवाओं की श्रेणियों पर वसूला जा सके।
     
  • जीएसटी परिषद का कार्य उन करों पर सुझाव देना भी है जिन्हें केंद्रीय और राज्य कानूनों द्वारा सम्मिलित किया गया है। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य जीएसटी कानूनों का मसौदा तैयार करने के दौरान, पंचायतों, म्यूनिसिपैलिटी इत्यादि के राजस्व स्रोतों का संरक्षण किया जाना चाहिए। राज्य सरकारों को भी स्थानीय निकायों में पर्याप्त राजस्व प्रवाह को सुनिश्चित करने के उपाय करने चाहिए।
     
  • विवादों का समाधानः बिल कहता है कि जीएसटी परिषद विवादों के समाधान के तौर-तरीकों पर फैसला कर सकती है। कमिटी ने कहा है कि एक पृथक विवाद निवारण अथॉरिटी से सामान्यतः जीएसटी परिषद और विशेष रूप से विधायिका के कामकाज में बाधा उत्पन्न होगी।
     
  • कमिटी ने जीएसटी के कार्यान्वयन के संबंध में कुछ अन्य सुझाव दिए। इसमें बैंकिंग सेवाओं में जीएसटी की वसूली, जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) इत्यादि शामिल हैं।
     
  • बैंकिंग सेवाओं की जीएसटी दरें: कमिटी ने सुझाव दिया कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करने के लिए बैंकिंग उद्योग में जीएसटी दर न्यूनतम होनी चाहिए। अगर संभव हो तो बैंकिंग सेवाओं को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।
     
  • जीएसटीएनः जीएसटीएन कर आंकड़ों के प्रबंधन और जीएसटी की रिपोर्टिंग के लिए बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क है। कमिटी ने कहा है कि जीएसटीएन में गैर सरकारी शेयर होल्डिंग पर निजी बैंकों का प्रभुत्व है जोकि वांछनीय नहीं है। यह सुझाव दिया गया है कि गैर सरकारी संस्थानों की शेयरहोल्डिंग को पब्लिक सेक्टर के बैंकों और वित्तीय संस्थानों तक सीमित कर दिया जाए।
     
  • यह भी कहा गया कि राज्यो की आईटी संबंधी तैयारियों में सुधार किया जाए। इसके अतिरिक्त, आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर, एकीकृत टैक्स क्रेडिट क्लीयरिंग तंत्र को दुरस्त रखा जा सकता है।
     
  • असहमति के नोटः संसद सदस्यों द्वारा असहमति के तीन नोट सौंपे गए। मधुसूदन मिस्त्री, मणिशंकर अय्यर और बालचंद्र मुंगेकर (अखिल भारतीय कांग्रेस) ने एक नोट दिया। ए.नवनीथकृष्णनन (अन्नाद्रमुक) ने एक नोट अलग से दिया। तीसरा नोट के.एन. बालगोपाल और डी. राजा (सीपीआई) ने दिया। चार संसद सदस्यों ने 1% अतिरिक्त कर का विरोध किया। इसके अतिरिक्त श्री नवनीथकृष्णनन ने सुझाव दिया कि 1% अतिरिक्त कर के बजाय, राज्यों को माल की सभी अंतरराज्यीय आपूर्तियों पर आईजीएसटी में केंद्र के 4% हिस्से को बरकरार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। तीन नोट जीएसटी परिषद के वोटिंग पैटर्न में सुधार के पक्ष में थे जिसमें राज्यों को वोट में 3/4 का महत्व और केंद्र को 1/4 का महत्व दिया जाना चाहिए।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।