स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

फैक्टरिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020

 

  • वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: जयंत सिन्हा) ने 3 फरवरी, 2021 को फैक्टरिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 में संशोधन करता है और फैक्टरिंग बिजनेस करने वाली एंटिटीज़ के दायरे को बढ़ाता है। फैक्टरिंग एक ऐसा लेनदेन होता है जिसमें एक एंटिटी (फैक्टर) तुरंत फंड्स हासिल करने के लिए अपने ग्राहकों के पूरे रिसिवेबल्स या उसके एक हिस्से को थर्ड पार्टी को बेच देती है। रिसिवेबल्स वह राशि होती है जोकि किसी वस्तु, सेवा, या किसी एंटिटी द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा के उपयोग के लिए ग्राहकों (जिन्हें ऋणी कहा जाता है) पर बकाया होती है। फैक्टर ग्राहकों से बकाया राशि रिकवर करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • एमएसएमईज़ के लिए क्रेडिट की सुविधा बढ़ाना: हालांकि फैक्टरिंग सभी उद्यमों के लिए उपलब्ध है, कमिटी ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमईज़) के भुगतानों में देरी की समस्या को देखते हुए बिल के महत्व का उल्लेख किया। 
     
  • कमिटी ने एमएसएमईज़ के लिए क्रेडिट की सुविधा बढ़ाने हेतु कुछ उपायों का सुझाव दिया। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फैक्टरिंग के लिए क्रेडिट इंश्योरेंस देना, ताकि फैक्टर्स को संरक्षण मिले, (ii) फैक्टर्स को विशेष एमएसएमई फंडिंग एंटिटी का दर्जा देना जिससे उनके कॉरपस का एक बड़ा हिस्सा एमएसएमईज़ के लिए निर्धारित हो, और (iii) ग्राहकों, एमएसएमईज़ और फैक्टर्स को शिक्षित करने के अभियान चलाना ताकि फैक्टरिंग का इस्तेमाल किया जा सके।
     
  • टीआरईडीएस को जीएसटीएन के साथ जोड़ना: ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) एमएसएमईज़ के ट्रेड रिसिवेबल्स के वित्त पोषण का एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है। वस्तु एवं सेवा टैक्स नेटवर्क (जीएसटीएन) सरकार और टैक्सपेयर्स को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने के लिए आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करता है। 2019 में यह अनिवार्य किया गया कि एक अधिसूचित सीमा से अधिक टर्नओवर वाले टैक्सपेयर्स को जीएसटीएन पोर्टल पर जीएसटी संबंधी कुछ दस्तावेजों को अपलोड करना होगा। इन दस्तावेजों में जीएसटी इनवॉयस, बिजनेस टू बिजनेस ट्रांजैक्शंस के लिए क्रेडिट और डेट नोट्स शामिल हैं।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि जीएसटीएन ई-इनवॉयसिंग पोर्टल के साथ टीआरईडीएस को जोड़ा जाए। इससे टीआरईडीएस प्लेटफॉर्म पर सभी जीएसटी इनवॉयस की ऑटोमैटिक अपलोडिंग हो जाएगी और इनवॉयस का रियल टाइम एक्सेस हो सकेगा। कमिटी ने कहा कि इससे पूरी प्रक्रिया और प्रामाणिक होगी और फैक्टर्स के लिए टीआरईडीएस प्लेटफॉर्म आकर्षक बनेगा, एमएसएमईज़ के क्रेडिट फ्लो में सुधार होगा।
     
  • टीआरईडीएस पर सरकारी बकाये की अनिवार्य लिस्टिंग: कमिटी के अनुसार, बिल में यह संशोधन किया जाए कि टीआरईडीएस प्लेटफॉर्म पर केंद्र और राज्य सरकारों के रिसिवेबल्स की लिस्टिंग अनिवार्य हो। इससे यह सुनिश्चित होगा कि एमएसएमईज़ को बकाया सरकारी भुगतान समय रहते उपलब्ध हो।     
     
  • फैक्टर्स का दायरा बढ़ाना: एक्ट के अंतर्गत फैक्टरिंग निम्नलिखित द्वारा की जा सकती है: (i) गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी), या किसी ऐसी कंपनी द्वारा जोकि एक्ट के अंतर्गत फैक्टर के रूप में रजिस्टर्ड है, और (ii) बैंक या वैधानिक निगम (जोकि फैक्टर के रूप में रजिस्ट्रेशन की शर्त से मुक्त है)। एनबीएफसी तभी फैक्टरिंग कर सकते हैं जब उनके 50% से अधिक एसेट्स और आय फैक्टरिंग बिजनेस से प्राप्त होती हो। बिल में फैक्टरिंग के लिए एनबीएफसीज़ हेतु इस सीमा को तो हटाया गया लेकिन रजिस्ट्रेशन की शर्त को बरकरार रखा गया था।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को ‘फैक्टर’ की जगह ‘कंपनी’ शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे सभी एनबीएफसीज़ रजिस्ट्रेशन की शर्त के बिना फैक्टरिंग कर सकेंगे।
     
  • आरबीआई की रेगुलेटरी क्षमता: बिल भागीदारी की शर्त को हटाता है जिससे अधिक से अधिक एनबीएफसी फैक्टरिंग में भाग ले सकें। कमिटी ने कहा कि बिल को लागू करने से फैक्टर्स की संख्या सात एनबीएफसी-फैक्टर्स से बढ़कर हजारों फैक्टर्स हो सकती है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रेगुलेटरी जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। कमिटी ने इस बात पर जोर दिया कि आरबीआई को अपने रेगुलेटरी संसाधनों को बढ़ाने की जरूरत है।
     
  • फैक्टरिंग बिजनेस का विकास: कमिटी ने फैक्टरिंग बिजनेस के विकास से संबंधित कुछ टिप्पणियां दीं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) रिसिवेबल्स के लिए क्रेडिट रेटिंग प्रणाली की जरूरत, और (ii) कमर्शियल बैंकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना कि वे फैक्टर्स की होलसेल फाइनांसिंग करें।

 

 

 

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