स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

लोकपाल और लोकायुक्त तथा अन्य संबंधित कानून (संशोधन) बिल, 2014

  • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय पर बनी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सनः डॉ. ई. एम. सुदर्शन नाच्चीयप्पन) ने 7 दिसंबर, 2015 को लोकपाल और लोकायुक्त तथा अन्य संबंधित कानून (संशोधन) बिल, 2014 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल 18 दिसंबर, 2014 को लोकसभा में पेश किया गया था और 22 दिसंबर, 2014 को अवलोकन के लिए कमिटी के पास भेजा गया था।
     
  • यह बिल लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट, 2013 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना एक्ट, 1946 को संशोधित करता है जोकि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की स्थापना करता है।
     
  • सबसे बड़ी एकल विपक्षी पार्टी के नेता को सेलेक्ट कमिटी का हिस्सा बनानाः 2013 का एक्ट कहता है कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी सेलेक्शन कमिटी में लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) को शामिल किया जाएगा। बिल में इस प्रावधान में संशोधन किया गया है और कहा गया है कि मान्य एलओपी की अनुपस्थिति में सेलेक्शन कमिटी में सबसे बड़ी एकल विपक्षी पार्टी का नेता यह भूमिका निभाएगा। स्टैडिंग कमिटी ने कहा कि यह संशोधन उपयुक्त है। ऐसा ही प्रावधान केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) की नियुक्ति के लिए भी मौजूद है।
     
  • जन सेवकों द्वारा परिसंपत्तियों और दायित्वों की घोषणाः 2013 के एक्ट में कहा गया है कि संसद सदस्यों सहित सभी जन सेवकों को पद ग्रहण करने के 30 दिन के अंदर सक्षम प्रशासन के समक्ष अपनी (पति या पत्नि और आश्रित बच्चों की भी) परिसंपत्तियों और दायित्वों की घोषणा करनी होगी। इसके बाद यह सूचना संबंधित संगठन की वेबसाइट पर भी प्रकाशित की जाएगी। बिल में इस प्रावधान में संशोधन किया गया है और कहा गया है कि एक जन सेवक की घोषणा में उसके या उसके परिवार के स्वामित्व वाली संपत्ति सहित, सभी दायित्वों और परिसंपत्तियों की सूचना शामिल होगी। लोक प्रतिनिधित्व एक्ट, 1951, अखिल भारतीय सेवा एक्ट, 1951, आदि में जन सेवकों से संबंधित प्रावधान भी यहां लागू होंगे।
     
  • कमिटी ने कहा कि जन सेवकों को सक्षम अथॉरिटी के समक्ष अपनी परिसंपत्तियों और दायित्वों की घोषणा करनी चाहिए। ऐसी घोषणाओं को विश्वसनीय बनाए रखने के लिए लोकपाल को भेजा किया जाना चाहिए। जन सेवकों द्वारा फाइल किए गए रिटर्न की समीक्षा करने के लिए ये दोनों अथॉरिटीज सक्षम होंगी। इस तरह की दोहरी जांच के मद्देनजर, कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसी परिसंपत्तियों और दायित्वों को सार्वजनिक करना जरूरी नहीं होना चाहिए।
     
  • कमिटी ने कहा कि जन सेवकों के परिवार के सदस्यों को अपनी आय से अर्जित संपति को सार्वजनिक करना बाध्यकारी नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के खुलासे संविधान के अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) या अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का उल्लंघन हो सकते हैं। फिर भी जन सेवकों को अपने आश्रितों तथा किसी अन्य के नाम पर स्वयं द्वारा अर्जित परिसंपत्तियों और दायित्वों को घोषित करना चाहिए।
     
  • लोकपाल के सचिव, निदेशकों के पदः बिल में कहा गया है कि लोकपाल के सचिव का पद सचिव स्तर के बजाय अतिरिक्त सचिव स्तर का होना चाहिए। इसी तरह जांच निदेशक (डीओआई) और अभियोजन निदेशक (डीओपी) का पद अतिरिक्त सचिव से संयुक्त सचिव स्तर का कर दिया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि चूंकि लोकपाल के सचिव को उच्च पद के अधिकारियों के साथ संबंध-संपर्क करना होगा, इसलिए यह जरूरी है कि उसका पद भारत सरकार के सचिव के पद से नीचे का न हो। इससे उसका स्वतंत्र रूप से कार्य करना भी सुनिश्चित होगा। यह सुझाव दिया गया है कि लोकपाल के डीओआई और डीओपी के पदों को भी अतिरिक्त सचिव स्तर पर बरकरार रखा जाए।
     
  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव दिया कि लोकपाल के तहत डीओआई के पद के गठन की आवश्यकता नहीं है। सीवीसी के तहत गठित पद को लोकपाल द्वारा जांच के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए।
     
  • 1946 के एक्ट में संशोधनः बिल सीबीआई के डीओपी के पात्रता मानदंड को स्पष्ट करता है जिसमें संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी शामिल हैं। कमिटी ने सुझाव दिया है कि डीओपी की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए उसका पद सीबीआई के निदेशक के बराबर होना चाहिए।
     
  • बिल कहता है कि सीबीआई के डीओपी की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट का रिकॉर्ड और रखरखाव विधि और न्याय (लॉ एंड जस्टिस) मंत्रालय में किया जाना चाहिए। स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया कि लोकपाल का डीओपी भ्रष्टाचार से जुड़े सभी मामलों से निपटने के लिए जिम्मेदार है और लोकपाल को उसका वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन करना चाहिए।
     
  • भ्रष्टाचार को लक्षित करने के लिए एकीकृत दृष्टिकोणः कमिटी ने सुझाव दिया कि सीवीसी और सीबीआई को लोकपाल के साथ पूरी तरह से एकीकृत किया जाना चाहिए (उनके भ्रष्टाचार विरोधी कार्यों के संबंध में)। लोकपाल को एपेक्स स्तर का होना चाहिए और सीवीसी और सीबीआई (भ्रष्टाचार विरोधी शाखा) को उसके तहत प्रत्यक्ष रूप से कार्य करना चाहिए। लोकपाल को भ्रष्टाचार के मामलों की जांच-पड़ताल करने और अभियोजन के लिए इन संगठनों का प्रयोग करना चाहिए।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।