लेजिसलेटिव ब्रीफ

बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • सहकारी बैंकों को बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के कई प्रावधानों से छूट है। बिल इनमें से कुछ प्रावधानों को सहकारी बैंकों पर लागू करता है और उन्हें एक्ट के उन रेगुलेशंस के अंतर्गत लाता है जो वाणिज्यिक बैंकों पर लागू होते हैं।
     
  • सहकारी बैंक आरबीआई की पूर्व मंजूरी से पब्लिक से इक्विटी या अनसिक्योर्ड डेट कैपिटल इकट्ठा कर सकते हैं। 
     
  • आरबीआई सहकारी बैंकों के चेयरपर्सन के रोजगार की शर्तों और क्वालिफिकेशन को निर्दिष्ट कर सकता है। आरबीआई ऐसे चेयरपर्सन को हटा सकता है जोकि फिट और उचित के मानदंड पर खरा न उतरे और उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है। वह क्वालिफाइड सदस्यों की पर्याप्त संख्या को सुनिश्चित करने के लिए निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) के पुनर्गठन के निर्देश दे सकता है। 
     
  • आरबीआई राज्य सरकार की सलाह से किसी सहकारी बैंक के निदेशक मंडल को सुपरसीड कर सकता है। 
     
  • बिल आरबीआई को इस बात की अनुमति देता है कि वह मोहलत (मोराटोरियम) दिए बिना बैंक के पुनर्गठन और एकीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दे। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • सहकारी बैंक निम्न आय वर्ग के लोगों को बैंकिंग की सुविधा प्रदान करते हैं। हालांकि वाणिज्यिक बैंकों की तरह आरबीआई सहकारी बैंकों की रेगुलेटरी निगरानी नहीं करता, जोकि सहकारी बैंकों के खराब प्रदर्शन का एक कारण है। यह बिल सहकारी बैंकों के प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और वाइंडिंग अप (कारोबार समेटने) को आरबीआई रेगुलेशन के दायरे में लाता है।  
     
  • संविधान में बैंकिंग संघीय सूची में आने वाला विषय है और सहकारी समितियों का निगमीकरण, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप राज्य सूची का। सवाल यह है कि क्या बैंकिंग की गतिविधि को रेगुलेट करने के लिए सहकारी बैंकों के प्रबंधन, ऑडिट, पूंजी और वाइंडिंग अप का रेगुलेशन जरूरी है और इसीलिए क्या बिल संसद की विधायी क्षमता के दायरे में आता है।
     
  • बिल सहकारी बैंकों को यह अधिकार देता है कि वे अपने सदस्यों और बैंक के संचालन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को इक्विटी शेयर जारी कर सकते हैं। चूंकि सहकारी समितियां अपने सदस्यों से पूंजी जमा करती हैं, यह अस्पष्ट है कि पब्लिक से इक्विटी कैपिटल जमा करने का क्या अर्थ है। इसके अतिरिक्त सदस्यों के शेयर कैपिटल के रिडंप्शन पर रोक लगाने से उनके बाहर निकालने का विकल्प सीमित होता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अधिसूचित वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंक और सहकारी बैंक आते हैं। सहकारी बैंक निम्न आय वर्ग के लोगों को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करते हैं और इस प्रकार वित्तीय समावेश का उद्देश्य पूरा होता है।[1] 2015 तक सहकारी बैंकों के लगभग 90ऋणों में से प्रत्येक पांच लाख रुपए से कम के थे जोकि इन बैंकों के कुल उधार का 33% है। सहकारी बैंक ऐसी सहकारी समितियां होते हैं जिनका मुख्य कारोबार बैंकिंग होता है। इन समितियों पर इनके सदस्यों का स्वामित्व होता है। वे ही उन्हें प्रमोट, नियंत्रित और प्रबंधित करते हैं और उन्हें सहायता प्रदान करते हैं।  

संविधान के अनुसार, राज्य सहकारी समितियों को निगमित करने, उनके रेगुलेशन और वाइंडिंग अप के लिए कानून बना सकते हैं।[2]  राज्य अपने सहकारी समिति एक्ट्स के अंतर्गत रजिस्ट्रार सहकारी समिति (आरसीएस) के जरिए सहकारी समितियों को रेगुलेट करते हैं। 1965 में बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 (बीआर एक्ट) के कुछ प्रावधानों को सहकारी बैंकों पर लागू किया गया।[3] इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सहकारी बैंकों को रेगुलेट करने के लिए और शक्तियां मिल गईं। जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा तथा इन बैंकों को डिपॉजिट इंश्योरेंस कवरेज देने के लिए यह कदम उठाया गया था। 

आरबीआई राज्यों के सहकारी बैंकों, जिला (केंद्रीय) सहकारी बैंकों और प्राथमिक सहकारी बैंकों (जिन्हें शहरी सहकारी बैंक भी कहा जाता है) को रेगुलेट करता है। वह इन बैंकों की बैंकिंग संबंधी गतिविधियों को रेगुलेट करता है जैसे नए बैंकों/शाखाओं को लाइसेंस जारी करना और निवेश एवं ऋण संबंधी नीतियां। आरबीआई पूंजी पर्याप्तता, एसेट्स के वर्गीकरण, लिक्विडिटी की जरूरतों और एक्सपोजर के नियमों को भी निर्धारित करता है।[4] हर राज्य में आरसीएस अपने अंतर्गत रजिस्टर्ड सहकारी बैंकों के निगमीकरण, रजिस्ट्रेशन, प्रबंधन, रिकवरी, ऑडिट, निदेशक मंडल के सुपरसेशन और लिक्विडेशन को रेगुलेट करता है।

बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल बीआर एक्ट में संशोधन करता है और सहकारी बैंकों के प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और लिक्विडेशन को आरबीआई के रेगुलेटरी दायरे में शामिल करता है। इस बिल को 14 सितंबर, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया। इस पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए इस बिल को लाया गया है। उन्होंने पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक के संकट का उल्लेख किया। बिल 26 जून, 2020 को जारी बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 का स्थान लेता है।[5]  ऐसे ही बदलाव करने वाला एक बिल 3 मार्च, 2020 को पेश किया गया था जिसे 14 सितंबर को वापस ले लिया गया। [6]  

मुख्य विशेषताएं

बिल दो प्रकार के परिवर्तन करता है: (iसहकारी बैंकों पर बीआर एक्ट के उन प्रावधानों को भी लागू करना, जिन्हें पहले हटा दिया गया था, और (iiबाकी के सभी बैंकों पर लागू होने वाले कुछ कानूनी प्रावधानों में संशोधन। 

सहकारी बैंक

  • प्रबंधन की क्वालिफिकेशन को तय करनासहकारी बैंकों को बीआर एक्ट के उन प्रावधानों से छूट है जिनमें चेयरपर्सन और निदेशक मंडल के रोजगार और क्वालिफिकेशन की शर्ते निर्धारित की गई हैं। अन्य प्रतिबंधों के साथ बिल में प्रावधान किया गया है कि सहकारी बैंक किसी ऐसे व्यक्ति को चेयरपर्सन नहीं बना सकते, जो कि इनसॉल्वेंट है या नैतिक अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है। बिल आरबीआई को यह अधिकार देता है कि अगर चेयरपर्सन उपयुक्त या उचित नहीं तो वह उसे हटा सकता है और अगर बैंक किसी उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति नहीं करता, तो आरबीआई ऐसा कर सकता है।
     
  • बिल में प्रावधान है कि निदेशक मंडल में कम से कम 51% सदस्यों के पास एकाउंटेंसी, बैंकिंग, अर्थशास्त्र या कानून जैसे क्षेत्रों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए। अगर बैंक इन शर्तों को पूरा नहीं करता तो बिल के अंतर्गत आरबीआई को यह अधिकार दिया गया है कि वह बैंक को मंडल के पुनर्गठन का निर्देश दे। अगर बैंक इस निर्देश का पालन नहीं करता तो आरबीआई निदेशकों को हटा सकता है और उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है। 
     
  • निदेशक मंडल का सुपरसेशनबीआर एक्ट के अंतर्गत आरबीआई को अधिकतम पांच वर्षों के लिए बहुराज्यीय सहकारी बैंक के निदेशक मंडल के सुपरसेशन के आदेश जारी करने तथा एक प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) को नियुक्त करने का अधिकार है। बहुराज्यीय सहकारी बैंक ऐसे सहकारी बैंक होते हैं जिनका दो या उससे अधिक राज्यों में संचालन किया जाता है और बहुराज्यीय सहकारी समिति एक्ट, 2002 के अंतर्गत रजिस्टर्ड होते हैं। अन्य सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल के सुपरसेशन के लिए आरबीआई आरसीएस से संपर्क कर सकता है। बिल आरबीआई के अधिकारों में विस्तार करता है और उसे सभी सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल को सुपरसीड करने की शक्ति देता है। अगर बैंक राज्य आरसीएस के अंतर्गत रजिस्टर्ड है तो आरबीआई संबंधित राज्य सरकार की सलाह से आदेश जारी कर सकता है। इसके लिए वह एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर राज्य सरकार से टिप्पणी मांग सकता है।  
     
  • ऑडिट और वाइंडिंग अपबिल के अंतर्गत अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों की तरह सहकारी बैंकों का ऑडिट किया जाएगा। एक क्वालिफाइड व्यक्ति द्वारा खातों को ऑडिट किया जाएगा और ऑडिटर की नियुक्ति, पुनर्नियुक्ति या उसे हटाने के लिए आरबीआई की पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी। आरबीआई ऐसे लेनदेन और आदेश में निर्दिष्ट अवधि के लिए विशेष ऑडिट का आदेश दे सकता है। इससे पहले सहकारी समिति कानूनों के अंतर्गत उल्लखित ऑडिट के अतिरिक्त विशेष ऑडिट के लिए आरबीआई आदेश जारी कर सकता था। 
     
  • बिल बैंकों के वाइंडिंग अप से संबंधित कुछ प्रावधानों और वाइंडिंग अप की कार्रवाई में तेजी लाने से संबंधित विशेष प्रावधानों को सहकारी बैंकों पर भी लागू करता है।  
     
  • शेयर और सिक्योरिटी को जारी करनासहकारी बैंकों को बीआर एक्ट के अंतर्गत शेयर और सिक्योरिटी जारी करने के प्रावधान से छूट है। अन्य बैंकों को इक्विटी या प्रिफरेंस शेयर जारी करने की अनुमति है और आरबीआई को प्रिफरेंस शेयर्स को जारी करने पर शर्तें लगाने का अधिकार है। वोटिंग शेयर आम तौर पर एक शेयर एक वोट के आधार पर आबंटित किए जाते हैं। एक्ट (आरबीआई निर्देशों के साथ पढ़ा जाए) इक्विटी शेयरहोल्डर द्वारा प्रयोग किए गए वोटिंग के अधिकार पर 15की सीमा तय करता है। 
     
  • बिल बीआर एक्ट से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करता है। वह प्रावधान करता है कि सहकारी बैंक आरबीआई की पूर्व मंजूरी के साथ सदस्यों या बैंक के संचालन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फेस वैल्यू या प्रीमियम पर इक्विटी, प्रिफरेंस या स्पेशल शेयर जारी कर सकते हैं। बैंक अनसिक्योर्ड डिबेंचर या बॉन्ड्स को भी जारी कर सकते हैं जिनकी परिपक्वता अवधि 10 वर्ष से कम नहीं होगी। बैंक आरबीआई की अनुमति के बिना पूंजी वापस नहीं ले सकते। इसके अतिरिक्त सदस्य शेयर्स को सरेंडर कर बैंक से भुगतान पाने के लिए अधिकृत नहीं हैं। 

मोराटोरियम के बिना पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना बनाना 

  • बीआर एक्ट के अंतर्गत आरबीआई बैंक को मोराटोरियम में रखे बिना, उसके पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना बना सकता है। ऐसा बैंक के उचित प्रबंधन को बहाल रखने, या जमाकर्ताओं, आम लोगों या बैंकिंग प्रणाली के हितों की रक्षा के लिए किया जा सकता है। मोराटोरियम में रखे गए बैंकों के खिलाफ छह महीने तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती। इसके अतिरिक्त बैंक मोराटोरियम के दौरान कोई भुगतान नहीं कर सकते या अपने देनदारियों की अदायगी नहीं कर सकते। बिल में आरबीआई को इस बात की अनुमति दी गई है कि वह मोराटोरियम के बिना बैंक के पुनर्गठन या एकीकरण की योजना शुरू कर सकता है। 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

सहकारी बैंकों की भूमिका

भारत में बैंकिंग संरचना पर विमर्श पत्र (2013) में आरबीआई ने बैंकों के लिए चार स्तरीय ढांचे की परिकल्पना की थी जिसमें अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय बैंक शामिल हैं। [7]   चौथे स्तर पर मौजूद स्थानीय क्षेत्र के बैंकों और सहकारी बैंकों की परिकल्पना इस आधार पर की गई थी कि वे छोटे उधारकर्ताओं की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करेंगे। शहरी सहकारी बैंक (यूसीबीज़) स्थानीय समुदायों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करते हैं और शहरी एवं अर्ध शहरी क्षेत्रों में निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए कार्य करते हैं। 2013 में आरबीआई ने यूसीबीज़ को स्थानीय क्षेत्र के बैंकों में बदलने पर विचार किया ताकि उनका वाणिज्यीकरण किया जा सके। हालांकि उन्होंने इस बात पर गौर किया कि बैंकिंग प्रणाली में सहकारिता की भावना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे निम्न आय वर्ग के लोगों को ऋण दिया जा सकता है। यूसीबीज़ पर हाई पावर्ड कमिटी (एचपीसी) ने 2015 में सुझाव दिया कि आरबीआई को ऐसे क्षेत्रों में यूसीबीज़ को नए लाइसेंस जारी करने चाहिए जहां या तो बैंक हैं नहीं, या बहुत कम संख्या में हैं। चूंकि ये बैंक वित्तीय समावेश में बड़ी भूमिका निभाते हैं। 

हालांकि 2013 में आरबीआई यह कह चुका था कि यूसीबीज़ कई समस्याओं के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, जैसे निम्न पूंजी आधार, पूंजी जमा करने के स्रोतों की कमी (यूसीबीज़ सिर्फ अपने सदस्यों से इक्विटी पूंजी जमा करते हैं), खराब ऋण प्रबंधन और पेशेवर प्रबंधन की कमी।7 2013 के पत्र में सुझाव दिया गया है कि यूसीबीज़ को स्थानीय क्षेत्र के बैंकों में बदला जाए ताकि वे दोहरे नियंत्रण से मुक्त हो सकें (आरबीआई और आरसीएस) और पूंजी बटोरने की उनकी क्षमता में सुधार से उनके प्रदर्शन में भी सुधार होगा। आरबीआई की कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि यूसीबीज़ पर आरबीआई की कई रेगुलेटरी और सुपरवाइजरी शक्तियां लागू नहीं होतीं और इस वजह से उनके प्रदर्शन पर असर होता है।[8],[9],1  

आरबीआई लाइसेंसिंग और ऋण नीति को रेगुलेट करता है, प्रूडेंशियल नियमों को निर्धारित करता है और यूसीबीज़ का निरीक्षण करता है। वह इन बैंकों के प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई करने या उनके पुनर्गठन या लिक्विडेशन के लिए आरसीएस से सहायता की अपेक्षा करता है। यूसीबीज़ के प्रभावी रेगुलेशन के लिए एचपीसी (2015) ने सुझाव दिया था कि आरबीआई को निदेशक मंडल का गठन करने और उसे सुपरसीड करने, चेयरपर्सन को हटाने, ऑडिट करने, और यूसीबी को वाइंड अप करने की शक्तियां दी जानी चाहिए। आरबीआई बीआर एक्ट के अंतर्गत अन्य सभी बैंकों के संबंध में इन अधिकारों का इस्तेमाल करता है। बिल आरबीआई को यह अधिकार देता है कि वह सहकारी बैंकों के प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और वाइंडिंग अप पर अपना नियंत्रण रख सकता है।   

उल्लेखनीय है कि ऐसी अतिरिक्त शक्तियों से आरबीआई की सुपरवाइजरी क्षमता पर दबाव पड़ सकता है। वर्तमान में आरबीआई 86 अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों, 45 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 10 लघु वित्त बैंकों को रेगुलेट और सुपरवाइज करता है। बिल के जरिए 1,544 यूसीबी, 363 जिला (केंद्रीय) सहकारी बैंक और 33 राज्य स्तरीय सहकारी बैंक आरबीआई के रेगुलेशन और सुपरविजन के दायरे में आते हैं। 

संसद की विधायी क्षमता 

बिल के जरिए संसद सहकारी बैंकों के प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और वाइंडिंग अप को आरबीआई के रेगुलेशन के दायरे में शामिल करती है। सवाल यह है कि क्या इन मामलों के संबंध में सहकारी बैंकों के लिए कानून बनाना संसद के क्षेत्राधिकार में आता है। सहकारी बैंक विभिन्न राज्य स्तरीय सहकारी समिति कानूनों के अंतर्गत सहकारी समितियों के तौर पर रजिस्टर होते हैं और बैंकिंग का काम करते हैं। 

संविधान की सातवी अनुसूची में दर्ज संघीय सूची की प्रविष्टि 45 के जरिए संसद के पास बैंकिंग पर कानून बनाने की शक्ति है। सहकारी समितियों के निगमीकरण, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप से संबंधित मामले राज्य सूची की प्रविष्टि 32 के अंतर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त संघीय सूची की प्रविष्टि 43 में सहकारी समितियों के निगमीकरण, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप से संबंधित मामलों को संसद के कार्यक्षेत्र से हटाया गया है। 

यह सवाल पूछा जा सकता है कि क्या बैंकिंग’ को रेगुलेट करने के लिए प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और वाइंडिंग अप का रेगुलेशन जरूरी है, और इसलिए यह संघीय सूची की प्रविष्टि 45 के दायरे में आता है या क्या यह राज्य सूची की प्रविष्टि 32 के अंतर्गत सहकारी समिति के निगमीकरण, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप से मुख्य रूप से संबंधित है। जब 1965 में सहकारी बैंकों को बीआर एक्ट के दायरे में लाया गया था, तब उनके निगमीकरण, प्रबंधन और वाइंडिंग अप से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े प्रावधानों को हटा दिया गया था।[10]  बिल के उद्देश्य और कारणों के कथन में कहा गया है कि ये प्रावधान संघीय या समवर्ती सूची की किसी प्रविष्टि (बैंकिंग’ सहित) के मूल तत्व के दायरे में नहीं आते।10  

सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ का एक हालिया फैसला प्रासंगिक हो सकता है। [11] पीठ ने इस बात पर विचार किया था कि क्या सहकारी बैकों को सरफेसी एक्ट, 2002 के अंतर्गत ऋण वसूली की अनुमति देना संसद के क्षेत्राधिकार में आता है। पीठ ने इस पर फैसला दिया था कि ऋण वसूली बैंकिंग का अनिवार्य अंग है और इसलिए यह संसद के दायरे में आता है कि वह सहकारी बैंकों को सरफेसी कानून के अंतर्गत ऋण वसूली की इजाजत दे। फैसले में कहा गया था कि सहकारी बैंकों का पूरा संचालन और बैंकिंग की गतिविधि बीआर एक्ट के अंतर्गत आती है। बैंकिंग के मूल तत्व प्रविष्टि 45 के अंतर्गत आते हैं, लेकिन अगर उसके कुछ पहलु प्रविष्टि 32 में आ जाएं तो इसकी अनुमति है। अदालत ने यह भी कहा कि निगमीकरण, रेगुलेशन और वाइंडिंग अप के मामलों पर, जो संघीय सूची की प्रविष्टि 45 से संबंधित नहीं हैं, सहकारी बैंकों को राज्य कानून द्वारा शासित किया जाएगा। इसलिए सवाल यह है कि बैंकिंग की गतिविधि और बैंक (सहकारी बैंक) के संचालन के लिए क्या प्रबंधन, ऑडिट, पूंजी और वाइंडिंग अप का रेगुलेशन जरूरी है, और क्या बिल संसद की विधायी क्षमता के दायरे में आता है। 

पूंजी संबंधी प्रावधानों से सहकारी समितियों के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है

पब्लिक से इक्विटी पूंजी जमा करने का अधिकार और उसका प्रबंधन अस्पष्ट नहीं 

बिल सहकारी बैंकों को (आरबीआई की पूर्व मंजूरी के साथ) पब्लिक इश्यू या निजी प्लेसमेंट के जरिए फेस वैल्यू या प्रीमियम पर इक्विटी, प्रिफरेंस या स्पेशल शेयर जारी करने की अनुमति देता है। सहकारी समितियां सदस्यों के नियंत्रण के सिद्धांत पर गठित की जाती हैं और इसके साथ ही सदस्यों को (इक्विटी) शेयर जारी किए जाते हैं। चूंकि सहकारी समितियां सदस्यों से पूंजी जमा करती हैं, यह अस्पष्ट है कि पब्लिक से इक्विटी पूंजी जमा करने का क्या अर्थ है, और उसका प्रबंधन एवं रेगुलेशन कैसे किया जाएगा। इसके अतिरिक्त इक्विटी शेयर्स को जारी करने से सहकारी समितियों के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है, अगर वे अनुपातिक वोटिंग अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे। सहकारी समितियां सिर्फ अपने सदस्यों को वोटिंग अधिकार देती हैं जिसका आधार एक सदस्य एक वोट होता है, भले ही शेयरहोल्डिंग कितनी भी हो। उल्लेखनीय है कि यूसीबीज़ के लिए पूंजी जुटाने के तरीकों पर अध्ययन हेतु गठित विश्वनाथन कमिटी (2006) ने प्रिफरेंस और स्पेशल शेयर्स को जारी करने का सुझाव दिया था लेकिन इनमें से दोनों पर वोटिंग अधिकार नहीं दिए गए थे।[12]  

शेयर सरेंडर करने के बदले भुगतान पर रोक से सदस्यों के पास सीमित विकल्प

बिल के अंतर्गत शेयर कैपिटल को सरेंडर करने के बदले सदस्य भुगतान की मांग नहीं कर सकते। यह सहकारी समितियों से संबंधित कुछ कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन हो सकता है। उदाहरण के लिए कर्नाटक सहकारी समिति एक्ट, 1959 में यह प्रावधान है कि अगर कोई बकाया नहीं है तो सदस्यों को अपने शेयर्स का रिफंड दिया जाएगा।[13] बिल के इस प्रावधान से सहकारी समितियों के मौजूदा सदस्यों की चिंता बढ़ सकती है जिनके शेयर कैपिटल के सरेंडर करने के बाद बाहर निकलने के विकल्प सीमित हो जाएंगे। 

 

[1]Report of the High Powered Committee on Urban Cooperative Banks (ChairmanRGandhi), 2015, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs//PublicationReport/Pdfs/HPC3934E91FA21241B8B0ABC4C4DBF28A40.PDF.

[2]Entry 32, List II, Schedule VII.

[3]Banking Laws (Application to Co-operative SocietiesAct, 1965.

[4]Developments in Co-operative Banking, Report on Trends and Progress in Banking 2018-19, Reserve Bank of India, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/05CHPT5_24122019878A5AF64EB74900B7AD6FF7093EE45F.PDF.

[7]. Banking Structure in IndiaThe Way Forward, Discussion Paper, Reserve Bank of India, 2013, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs//PublicationReport/Pdfs/DPBS27082013_F.pdf.  

[8]. Report of the High Powered Committee on Urban Cooperative Banks (ChairmanKMadhav Rao), 1999, https://www.rbi.org.in/Scripts/PublicationReportDetails.aspx?FromDate=12/07/99&SECID=7&SUBSECID=0

[9]. Report of the Expert Committee on Licensing of New Urban Co-operative Banks (ChairmanYHMalegam), 2011, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs//PublicationReport/Pdfs/MFR120911RF.pdf

[10]. Banking Laws (Application to Co-operative SocietiesBill, 1964, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/Asintroduced/85_1964_LS_Eng.pdf

[11]Pandurang Ganpati Chaugule vs Vishwasrao Patil Murgud Sahakari Bank Ltd., Civil Appeal No5674 of 2009, Supreme Court of India, May 5, 2020, https://main.sci.gov.in/supremecourt/2008/27183/27183_2008_31_1501_21915_Judgement_05-May-2020.pdf.  

[12]. Report of the Working Group to examine issues relating to augmenting capital of UCBs (ChairmanNSVishwanathan), 2006, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs//PublicationReport/Pdfs/74324.pdf

[13]The Karnataka Co-operative Societies Act, 1959, http://sahakara.kar.gov.in/Doc/Cooperative%20Act.pdf. 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्रअलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।